हाय! मैं क्या करुँ मेरा ऐसा नसीब है।
चाहा जिसे दूर वो अनचाहा करीब है।
उसकी झलक को मैं तरस गया हूँ
आँखों से अपनी मैं बरस गया हूँ
हाल मेरे दिल का यारो बड़ा अजीब है।
हाय! मैं क्या करुँ मेरा ऐसा नसीब है।
जीने को मन मेरा करता नहीं है
उसके बगैर काम चलता नहीं है
मुझ जैसा न होगा कोई बदनसीब है।
हाय! मैं क्या करुँ मेरा ऐसा नसीब है।
उसको मैंने चाहा दिल से चाहा
दिल में बिठा के दिल से सराहा
फिर भी बन गया रे वो मेरा रकीब है।
हाय! मैं क्या करुँ मेरा ऐसा नसीब है।
दिल को सकूं कभी मिला ही नहीं
दिल का फूल कभी खिला ही नहीं
प्यार की खुश्बू कभी हुई न नसीब है।
हाय! मैं क्या करुँ मेरा ऐसा नसीब है।