1.
काश आप हमारे तलबगार होते।
तो हरगिज न हम बेक़रार होते॥
मिल जाते दिल से दिल अपने
दिलवर हम दिल से यार होते।
खिल कर महकते फूलों की तरह
प्यार की हम मदमस्त बहार होते।
दूरियाँ तो दूर ही रहती हम से
दिल की हम दिलवर पुकार होते।
हर खुशी होती अपने क़दमों में
इतने हम फिर न लाचार होते।
भला कौन खिला प्यार के बिना
प्यार से दोनो हम गुलज़ार होते।
-प्रेम फर्रुखाबादी
2.
दोनों को,यहाँ दोनों की,जरूरत है साहिब।
जिंदगी यहाँ,तभी बड़ी,खूबसूरत है साहिब॥
तब तक कोई मंदिर मंदिर नहीं होता प्यारे
जब तक,न विराजित कोई,मूरत है साहिब।
तन्हा जी के देख लीजिये मना कौन करता
तन्हा जीने की,तो न कोई,सूरत है साहिब।
कुछ भी कर लीजिए जब जी चाहे आपका
हर काम की,होती अपनी,मुहूरत है साहिब।
3.
वो मेरी हर समस्या सुलझाना चाहते है।
शायद इसी बहाने मुझे फुसलाना चाहते हैं॥
हर तरह से यकीन दिलाते नहीं थकते
सारे जमाने को ही झुठलाना चाहते हैं।
हाय जाने उन्हें क्या दिख गया मुझमें
मेरी लिए जमाने को ठुकराना चाहते हैं।
आशिक देखे बहुत मगर ऐसे न देखे
तन -मन -धन से लुटजाना चाहते हैं।
कहते यह दुनिया मुझको रास नहीं आती
मुझको लेकर कहीं को उड़जाना चाहते हैं।
दो पल नहीं जीवन भर का साथ चाहिए
इस तरह मुझसे जुड़ जाना चाहते हैं।
-प्रेम फर्रुखाबादी
4.
मेरी जिंदगी में कोई नहीं
फिर भी कभी रोई नहीं॥
डोरे डाले कइयों ने मगर
किसी में कभी खोई नहीं।
खड़ी रही सच के साथ
फसल झूठ की बोई नहीं।
हलकी रही सदा मन से
मन पर बोझ ढ़ोई नहीं।
जागती रही अक्ल से मैं
भूल से कभी सोई नहीं।
- प्रेम फर्रुखाबादी
5.
सत्य और असत्य के युध्द यहाँ हमेशा चले हैं।
पालक तो हम सभी हैं हमारी बदौलत पले हैं॥
जीना तो चाहे सभी अपनी जिंदगी को यहाँ पे
मगर जीने के लिए सब लोग सभी को छले हैं।
बस हम ही हम जियें और जिए कोई भी नहीं
इसी भावना के साथ इंसान-इंसान से जले हैं।
ज्ञान की धार अपनी हमेशा तेज़ ही करते रहें
दुःख दारुण जीवन के यहाँ पर ज्ञान से टले हैं।
नीचे गिरा दिया करती जरूरतें हर इंसान को
जरूरतों में ही लोग हमेशा सबके साथ ढले हैं।
लोभ लालच से दूरी बना कर रखना चाहिए
गिर करके इंसान इसमें अपने आपको दले हैं।
यही भावना है हित कर जियो और जीने दो
इंसान से इंसान यहाँ पर इसी भाव से फले हैं।
इन्सांन कोई जिंदगी में बुरा नहीं हुआ करता
जो दूसरे का हित चाहते होते बस वही भले हैं।
6.
प्यार में दिल से कितने ही दीवाने गए
कमअक्ल नहीं जाने कितने ही सयाने गए।
मुस्करा क्या लिया पल भर मैंने किसी से
दूर तक जाने कितने ही अफ़साने गए॥
जब भी ठोकर खायी किसी के प्यार में
मालूम नहीं जाने कितने ही मयखाने गए।
लाख समझाने पर भी न समझे कोई यहाँ
फिर भी चोट जाने कितने ही खाने गए॥
दीवाने माने नहीं किसी की अपने आगे
समझदार उन्हें कितने ही समझाने गए।
दिल का मामला तो बस दिल ही जाने
दिल के खेल में कितने ही पहचाने गए॥
गर दे दिया भरोसा किसी ने प्यार में तो
उनपे जाकर प्यार कितने ही बरसाने गए।
लैला मजनूँ की बातें तो करते हैं सभी
पर उन जैसा नाम कितने ही लिखवाने गए॥
बहुत दम भरते हैं लोग प्यार में दम का
मगर बेदम होकर कितने ही तहखाने गए।
मिटने की सिर्फ बातें ही बातें किया करते
मिटने की खातिर कितने ही परवाने गए॥
7.
जहाँ चाह वहाँ राह प्यारे
फिर दिल में क्यों दाह प्यारे।
कर के दिखायें कमाल कोई
तभी होती है वाह वाह प्यारे।
जिसने सीखा नहीं हुनर कोई
उन्हीं की निकलती आह प्यारे।
मान लो कहा अपनों का भी
हो जाएगी जिंदगी तबाह प्यारे।
बहुत ताकत होती है प्यार में
प्यार सब से बड़ी पनाह प्यारे।
संभाल सको संभालो खुद को
जिंदगी बड़ी ही अथाह प्यारे।
जो समझ लिया जिंदगी को
वही तो यहाँ पर शहंशाह प्यारे।
8.
कितना भी कर ले कोई चिल्ल पुआ।
होगा वही किस्मत में जो लिखा हुआ॥
भले ही पकाये कोई कहीं भी रख के
फल वही पका हुआ जो पेड़ से चुआ॥
9.
न जाने वो फेसबुक छोड़ कर क्यों चले गए।
अपने दीवाने का दिल तोड़ कर क्यों चले गए॥
दिल खूब बहलता था सभी का उन्हें देख कर,
बड़ी ही बेदर्दी से झकझोड़ क्यों कर चले गए॥
अब और जीने की कोई अरमान न रही बाकी,
खता तो बतलाते मुख मोड़ कर क्यों चले गए॥
ग़मों के सहारे बेखबर जिए जा रहा था जिंदगी,
खुशियों से मेरा रिश्ता जोड़ कर क्यों चले गये॥
वो थे तो खूब दिखते थे दोनों ही जहाँ सबको ,
रौशनी लेके मेरी आखें फोड़ कर क्यों चले गए॥
-प्रेम फ़र्रुखाबादी
10.
आप से क्या मिला साहिब।
दूर हुआ हर गिला साहिब॥
मत पूछियेगा हाल दिल का।
गुलाब जैसा खिला साहिब॥
अपना मिलन है कमाल का ।
क्या दिया है सिला साहिब॥
थम जाए बस वक्त यहीं।
यूं फले सिलसिला साहिब॥
11.
चाहने वालों की यहाँ कमी नहीं है।
मगर उनकी आखों में नमी नहीं है॥
लाख ठुकराए दुनियां प्रेम दीवानों को,
मगर उनकी गिनती कभी थमी नहीं है॥
भले ही कही हो आपने दिल से,
मगर बात आप की जमी नहीं है॥
कहने को बहुत खूबसूरत है दुनिया,
मगर तबियत मेरी कहीं रमी नहीं है॥
12.
तुम क्यों हुए मुझ पर फ़िदा,
यह तुम जानो।
फूल क्यों तेरे दिल का खिला,
यह तुम जानो।।
शिकायत भरी नज़रों से मुझे
देखते रहते हो,
करते रहते क्यों सबसे गिला
यह तुम जानो।।
13.
नफ़रत में अच्छे-अच्छे बिखर जाते हैं।
मुहब्बत में अच्छे-अच्छे निखर जाते हैं॥
मुहब्बत में अच्छे-अच्छे निखर जाते हैं॥
हुस्न का दीवाना यहाँ बताये कौन नहीं
देख कर हुस्न अच्छे-अच्छे मर जाते हैं।
देख कर हुस्न अच्छे-अच्छे मर जाते हैं।
अकेला यहाँ तो कोई जी नहीं सकता
पाकर साथी अच्छे-अच्छे संवर जाते है।
प्यार बिना मुश्किल से गुजरते हर पल
मिले प्यार तो अच्छे-अच्छे तर जाते हैं।
प्रेम फर्रुखाबादी
14.
थी कितनी वो मेरी दीवानी लिखेंगे।
कहानी वो आज सारी पुरानी लिखेंगे।।
जो दी थी मुझे बहुत प्यार से।
प्यार की वो प्यारी निशानी लिखेंगे।।
याद आता है वो गुजरा जमाना।
गुजरे हुए ज़माने की जवानी लिखेंगे।।
हाय वो रूप उसका गदराया हुआ।
पड़ी उस पर चुनर धानी लिखेंगे।।
भुलाये नहीं भूलता है प्यार उसका।
उसकी तो हर एक मेहरबानी लिखेंगे।।
बोलों से मुझको रिझाती थी वो।
वही उसकी मीठी-मीठी बानी लिखेंगे।।
हम दोनों डूबे थे प्यार में।
समझे जो ज़माना वो मानी लिखेंगे।।
हाय वो दिन वो प्यारी रातें ।
घड़ियाँ वो प्यारी-प्यारी सुहानी लिखेंगे।।
15.
पत्नी जब पति को
प्यार से नहीं देखती है।
पति की नज़र फिर उसे
दूर कहीं फ़ेकती है॥
धीरे-धीरे उनके दरमियाँ
बढ़ जाती हैं दूरियां
पति कहीं फिर पत्नी कहीं
आँख सेकती है॥
अपना प्यार बस अपनी
नज़र से ही देखो
ऐसा करने से ही जिन्दगी
हँसती खेलती है॥
16.
न किसी से नफरत है
न किसी से मुहब्बत है।
कोई भला माने या बुरा
अपनी तो ये आदत है॥
आज तक कौन किस को
खुश कर पाया है यहाँ
खुश रखना भी तो मित्र
एक बहुत बड़ी आफत है॥
ख़ुशी से उछल पड़ता है
हर कोई इस बात पर,
कहे कोई कि मेरे घर
मित्र आप की दावत है॥
बड़ी बेचैनी सताये और फिर
कुछ भी समझ न आये,
समझ जायें आपके दिल में
किसी के लिए चाहत है॥
अपने आगे अगर किसी की
चलने न दे कोई तो,
समझ लें वो ढीठ है
या उसमें बड़ी ताकत है॥
17.
तूने तो होँठ ही सिल दिये
बता आखिर किसके लिए।
तुझको देखके क्या कहूँ मैं
गिर पड़ा हूँ जैसे बिन पिए।
कैसे सम्भालूं बता अब खुदको
उपाय मैंने क्या क्या नहीं किये।
बात बने तो भला कैसे बने
बिना लिए दिल बिना दिये।
18.
इस दुनियां में कौन है अपना, कहना मुश्किल है।
जाने कौन कब दे जाय धोखा,कहना मुश्किल है॥
कहने को तो कहते सभी हैं हम साथ निभाएंगे लेकिन कौन निभाएगा कितना कहना मुश्किल है।
अक्सर लोग भरोसे से ही तोड़ देते हैं भरोसा
आखिर किस पर करें भरोसा,कहना मुश्किल है।
कहते हैं मुहब्बत और जंग में सब कुछ है जायज
पर इनके सिवा और बचा क्या कहना मुश्किल है।
पर इनके सिवा और बचा क्या कहना मुश्किल है।
-प्रेम फ़र्रुखाबादी
19.
यह जीवन जीना आसान नहीं
है कौन यहाँ परेशान नहीं।
होता दुःख उसी को अक्सर
होता जिसे कोई ज्ञान नहीं।
जो अपनी ही परवाह करे
पशु है कोई इंसान नहीं॥
बस वही भटकता रह जाये
आये जिसे यहाँ ध्यान नहीं।
किया न कोई परहित जिसने
कभी होता उसका कल्याण नहीं॥
बिना बुलाये पहुँच ही जाये
कहीं होता उसका सम्मान नहीं।
प्रभु चरणों के आगे यारो
हित कर कोई ध्यान नहीं॥
20.
तेरे प्यार में गिर गया हूँ
उठाले मुझको।
दे कर अपनी मुहब्बत के
उजाले मुझको।।
खुदको संभालते-संभालते मैं
थक गया हूँ,
कोई तो आये और आ के
संभाले मुझको॥
किसी को अपना बनाये बिना
कोई कैसे जिए
बुरा नहीं हूँ कोई तो अपना
बनाले मुझको।
मैं तैयार बैठा हूँ किसी को
अपनाने के लिए,
निभा दूंगा दिल से ग़र कोई
अपनाले मुझको।
चुस्त दुरस्त एक दम मस्त हो
उसकी तलाश है,
लोग पसंद ही नहीं आते ढीले-
ढाले मुझको।
जब भी बुलाओगे तब ही मै
दौड़ा चला आऊंगा,
कभी मेंरे पास आ ज़ा या
बुलाले मुझको।
बंद पड़ी हुई है मेरी किस्मत
तालों में यारो
चाबी लिए घूमूँ कहीं मिलते नहीं
ताले मुझको।
21.
" कंधे पर लाश "
इंसान ने इंसान का साथ छोड़ दिया है।
बेशर्मी से अपना मुख ही मोड़ लिया है॥
इंसान को इंसान कहने में शर्म आये
हैवानियत से अपना नाता जोड़ लिया है॥
ऐसा किसी के साथ न हो जमीन पर
जिसने भी देखा उन्हें झकझोड़ दिया है।
इतनी गिर जाएगी इंसानियत मालूम न था
खुदगर्जी ने इंसान को इंसान से तोड़ दिया है॥
22.
हर किसी से दिल लगा नहीं करता
जिससे लगा करता हटा नहीं करता।
उसको कोई कहे तो भला क्या कहे
जो प्यार से प्यार अदा नहीं करता।
इस दुनियां में ऐसा नहीं दिखा कोई
जो कभी किसी से दगा नहीं करता।
प्यार से ही प्यार पैदा होता अक्सर
प्यार से प्यार कभी घटा नहीं करता।
जो प्यार करता है बस करता ही है
भूल कर भी कभी गिला नहीं करता।
आदमी अपने कर्मों का फल भोगता
उसका खुदा उसका बुरा नहीं करता।
चुपचाप बैठ गया है वो दिल लेकर
वफ़ा के बदले क्यों वफ़ा नहीं करता।
23.
गरीब घर चलाना जानता है।
भूख भर मिटाना जानता है॥
निभें या फिर न निभें रिश्ते
फिर भी निभाना जानता है।
हालात तो रूलाते ही रहते
गम को छुपाना जानता है।
गरीब का यहाँ कोई नहीं
यह बात जमाना जानता है।
हर हालत में जिए जिंदगी
बुरा वक्त भुलाना जानता है।
रूठ कर क्या बिगाड़ लेगा
खुदको बहलाना जानता है।
24 .
चल पड़ा हूँ मुहब्बत की डगर।
न कुछ पता है न कुछ खबर॥
कुछ न पूँछिये दिल का हाल
बहुत खुश है दिल का नगर॥
दिल दीवाना हो जा पूरी तरह
न रहे कमी न रहे कोई कसर॥
मुहब्बत का नहीं है ज्ञान कोई
एक दम मैं अनारी हूँ बेहुनर॥
आखिर दिल करे तो क्या करे
न होती शाम न होती है सहर॥
चाहे सुबह हो चाहे हो शाम
निकल पड़ता हूँ सज-संवर॥
भटकता हूँ बादलों की तरह
पैर दुःखें और दुखे भी कमर॥
25
क्यों अपना समझ बैठे,जमाने को हम।
खुदको क्या कर बैठे,बहलाने को हम॥
जो ख्याल ही नहीं रखता बिल्कुल मेरा,
दिल दे बैठे अपना ऐसे,दीवाने को हम॥
जिसको सुनने को यहाँ कोई तैयार नहीं,
क्यों संभालें फिर ऐसे,अफ़साने को हम॥
उसकी तलब ने मुझे दीवाना बना दिया,
क्यों बेक़रार हुए बैठे उसे,पाने को हम॥
26.
कौन नहीं चित्त हुआ हुश्न की मार से।
यह सच है तुम पूंछ लो किन्ही चार से॥
गधा बना ही दिया जब इश्क ने यारो
तो कैसा डरना अब किसी भी भार से।
भला कौन बच पाया यहाँ बचने पे भी
कट ही जाए कोई आखिर तेज़ धार से।
जिंदगी यही हैं जो जी रहे हम सभी
क्या फर्क पड़े इस पार से उस पार से।
जियो जिंदगी आपकी है गैर की नहीं
चले जायेंगे सभी एक दिन संसार से।
आना जाना 'प्रेम' दस्तूर है कुदरत का
फिर कौन रुके यहाँ किस अधिकार से।
27 .
मुहब्बत की बात पर क्यों खो जाता है चेहरा तुम्हारा।
और भी मोहक जाने क्यों हो जाता है चेहरा तुम्हारा॥
मिलन की बात पर क्यों सोच में डूब जाया करते हो
गौर से पढ़ने पर नहीं पढ़ा जाता है चेहरा तुम्हारा।
तेरी दूरियों से जीना मेरा बड़ा मुश्किल हो जाये
दिल से मेरे निकल ही नहीं पाता है चेहरा तुम्हारा ॥
अब सासें ही तुम से मुझको जुदा कर पाएं दिलवर
दिल आँखों से दूर नहीं कर पाता है चेहरा तुम्हारा।
28 .
आखिर कब तक हम, यूं ही मिलते रहेंगे।
ख्वाबों में कब तक हम, यूं ही खिलते रहेंगे॥
कसमें वादे बहुत हुए अब आगे की तो सोचो,
बतलाओ कब तक हम, यूं ही छिलते रहेंगे॥
ऐसा न हो उम्र हमारी तय करने में चली जाए
जानेमन कब तक हम, यूं ही झिलते रहेंगे॥
बोल बोल के देख लिया बात नहीं बन पायी
होठों को कब तक हम,यूं ही सिलते रहेंगे॥
झूठ नहीं ये सच है क्या खूब है अपनी जोड़ी
बेचैनी से कब तक हम,यूं ही हिलते रहेंगे॥
29.
कर्म हमारे
देखो कर्म हमारे कभी,
हमारा,पीछा नहीं छोड़ें॥
चाहे कितना भी भागें,
चाहे कितना भी दौड़ें॥
अच्छे बुरे कर्म जो,
हम से हो जाएँ॥
फल देने को वही कर्म
साथ हमारे पौडें॥
आने - जाने के फेरों से,
मुक्ति वही पाएं॥
परम पिता परमेश्वर से जो,
अपना रिश्ता जोड़ें॥
करुणा, प्रेम, क्षमा की,
हिलोरें उनमें ही उठें॥
परहित की चादर जो,
अपने मन पर ओढ़ें॥
माया ने भरमाया हम को,
सब को यहाँ पर॥
परमानन्द को चाहें तो,
माया के बंधन तोड़ें॥
बैठ अकेले कहीं ध्यान कर,
जीवन को समझें॥
फिर जीवन को जीवन की,
राहों पर मोड़ें॥
जो चाहोगे मिल जायेगा,
तुम को जीवन से॥
लेकिन पहले इस जीवन को,
अच्छी तरह गोडें॥
एक बार मिले यह जीवन,
मिलता नहीं दुबारा॥
जितना चाहे जैसे चाहें,
इस जीवन को निचोड़ें॥
कर्म श्रेष्ठ है यही बताया,
जो भी जी के गए॥
नाकामी का 'कभी ठीकरा,
किस्मत पर न फोड़ें॥
-प्रेम फर्रुखाबादी
30..
मैं पिघल जाऊँगा मैं बदल जाऊँगा
जैसा भी ढ़ालोगी वैसा ढ़ल जाऊँगा।
देखते हैं कौन किसे कितना चाहे
तुम से आगे मैं निकल जाऊँगा।
बस प्यार मुझे यूँ ही करते रहना
वरना मैं तुम से मचल जाऊँगा।
जिऊँगा तुम्हारी ख़ुशी के वास्ते ही
दिलवर मेरे तुझको मैं फल जाऊँगा।
चाहे कैसे भी दौर आएं फ़िर भी
संभाल कर तुझे मैं संभल जाऊँगा।
एक बार पूंछ तो लो खुद से जानम
कि तुम्हारे लिये मैं चल जाऊँगा।
- प्रेम फ़र्रुखाबादी
31.
वो बात, मेरे दिल की,मानते तो बात थी
क्या मुझपे गुजर रही,जानते तो बात थी।
गुजर जाती जिंदगी ,अपनी बड़े प्यार से
प्यार अपना दिल से, छानते तो बात थी।
कुछ कहते सुनते हम, बैठते कहीं अकेले
तम्बू प्यार का दोनों, तानते तो बात थी।
कभी हम ने गौर ही, नहीं किया दिलवर
गर एक- दूजे को, पहिचानते तो बात थी।
एक- दूजे को पाके सफल जरूर होते प्रेम
दोनों अपने दिलों में, ठानते तो बात थी।
32.
जाने यह दुनिया कब से चल रही है।
आने-जाने वालों से ही पल रही है॥
न जाने कितने रूपों से गुजरी है यह
गिर-गिर के उठ-रही संभल रही है॥
कोई दुखी तो कोई सुखी सा नज़र आये
कहीं बुझ रही है कहीं जल रही है॥
जो आज दिख रही वो कल न रहेगी
रोज़ नए सांचे में यह ढल रही है॥
जैसे जिसके कर्म यहाँ लगे उसे वैसी यहाँ
किसी को फले किसी को खल रही है॥
33.
वो खुदको खुदा वो खुदको खुदी समझती है।
इस लिए दोनों की आपस में नहीं पटती है॥
एक पूरब को जाने लगता तो एक पश्चिम को
जब भी कभी उन में कोई बात चलती है॥
जुदाई एक दूजे की गंवारा नहीं है उनको
इधर वो हाथ मलता उधर वो हाथ मलती है॥
कोई बताये दोनों की निभे तो भला कैसे निभे
न वो कभी झुकता है न वो कभी झुकती है॥
34.
दिन-रात एक कर दिए मैंने तेरे इंतज़ार में।
तुम ही कहो मुझे क्या मिला तेरे प्यार में॥
सोचा था बैठ कर तुम मेरी तारीफ़ करोगे
मगर तुमने कुछ न कहा अपने इजहार में॥
तुमने जब भी कहा जहाँ पर भी कहा वहीं
बस दौड़ा चला आया तेरी एक पुकार में॥
तुम थे तो जिन्दगी मेंरे पास थी मेरे प्रियवर
तुम नहीं तो क्या करूँगा जी कर संसार में॥
धूप-छाँव का तो कोई असर ही नहीं पड़ता
हाय क्या कमाल का जादू हैं तेरे प्यार में॥
35 .
और नहीं अब तरसाओ,
आ जाओ बस आ जाओ।
ऐसे में कहो कैसे जियें,
आकर मुझे बता जाओ॥
कुछ भी नहीं सुहाता है
हल भी नज़र नहीं आता है
मधुर मिलन करके,
सुन्दर सपनों में सुला जाओ॥
कई दिनों से तड़प रही
तेरे वियोग में साजन
झूठ नहीं मैं सच कहती,
तड़पन मेरी मिटा जाओ॥
तन भड़कता ही रहता,
यह मन बिलखता ही रहता
तन की भाषा मन न समझे,
आकर समझा जाओ॥
प्रेम फर्रुखाबादी
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