36 .
यूँ ही हम मिलते रहे तो,
एक दूजे के हो जायेंगे।
मिल के भी न होंगे जुदा,
एक दूजे में खो जायेंगे।
देख के अपनी प्रेम कहानी
हो जाएगी दुनिया ही दीवानी
याद रखेगा सारा जहाँ ये
प्रीति हम ऐसी बो जायेंगे।
खुल के होगीं अपनी मुलाकातें
दिल से होंगी दिल की बातें
बातों से गर थक गये तो,
मिल कर हम सो जायेंगे।
प्यार बिना यहाँ कौन जिया
तड़प तड़प तड़पा लिया
सुन कर अपनी प्रेम कहानी
वो प्यार करेंगे जो आएँगे।
37 .
भुलाये नहीं भूलते दिन वो बचपन के।
बरसता था प्यार आँखों से छन-छन के॥
मुझे अपने प्यार पर बड़ा ही गरूर था
घूरते थे दर्पण में खुद को तन-तन के।
ढूँढ लेते थे मिलने का कोई बहाना
बड़े गुलाम थे हम तो दिल की धड़कन के।
सोचता हूँ तो सोचते ही रह जाता हूँ
हाय कितने प्यारे थे दिन वो जीवन के।
38 .
जब से दी है तूने अपनी मुहब्बत थोड़ी।
तेरे वास्ते ही मैंने यह दुनिया ही छोड़ी।
मैं कितना खुश हूँ यह मत पूछो मुझसे
लाखों में एक अपनी जम रही है जोड़ी।
उसे ही लग जाये बद्दुआ एक-दूसरे की
जिसने भी यह मुहब्बत बीच में ही तोड़ी।
तू माने या न माने मगर सच है यही
यह चुनरिया तो मैंने तेरे नाम की ओढ़ी।
एक दूजे पर यूँ ही हम मरते जायेंगे
भले ही आयें राहों में रोड़ा या रोड़ी।
39 .
बड़ी आशा लेकर आया तेरे दर पे माँ भवानी
कुछ भी तो ठीक नहीं है मेरे घर पे माँ भवानी
भक्ति से शांति मिलती कह गए हैं लोग ज्ञानी
मिले शांति मुझको भी ऐसा वर दे माँ भवानी
किया आज से अर्पण तुझको जीवन ये सारा
खिल जाए यह जीवन कुछ कर दे माँ भवानी
सारा जीवन गुजर गया धन दौलत ही कमाते
फिर भी घर नहीं है मेरा मुझे घर दे माँ भवानी
रही तमन्ना यही मेरी मैं उडूं असमानों में तक
कैसे उडूं हौसलों के मुझको पर दे माँ भवानी
जीते जीते ऊब गया हूँ हुई ख़ुशी न हासिल
मेरे भी जीवन में खुशी अब भर दे माँ भवानी
तुझपे मुझे सच्चा भरोसा कहता है मेरा मन
जीवन का हर कष्ट मेराअब हर ले माँ भवानी
40 .
वो मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे।
खुद को बेक़रार कर रहे होंगे॥
डूब-डूब कर मेरे ख्यालों में
ख़ुद को वो तैयार कर रहे होंगे।
ये मिलन याद बन कर रह जायेगा
तेज़ अपनी धार कर रहे होंगे।
अब और क्या-क्या बतायें हम तुम्हें
हदें वो सारी पार कर रहे होंगे।
41.
वफ़ादारी का दरवाजा हुआ बंद है।
बना हुआ हर कोई जयचंद है।
आज कल तंग हैं जिनसे भाभियाँ
या वो सास या फिर नन्द है।
कविता वही है सराहनीय आज कल
जिनमें बिंधा हुआ कोई छंद है।
शरीर यह अपना कुछ भी नहीं
आत्मा की कैद का फंद है।
समझाने से भी जो न समझे
वो मूर्ख है या अक्लमंद है।
जहाँ में वो ही जी सकता
रहे हौसला जिस का बुलंद है।
मान मिले न मिले दाम मिले
लालची हो ही जाता रजामंद है।
गुलाम नहीं कोई तो बना डालो
गुलाम आज सभी की पसंद है।
42 .
गुजर गया यह जीवन मेरा रोते-रोते।
अनचाहे रिश्तों का बोझा ढ़ोते-ढ़ोते।
पीछे पड़ गयी मेरे यह दुनिया दीवानी
कब तलक छुडाऊँ पीछा सोते-सोते।
फलते देखे पाप दिन दूने रात चौगुने
फल पाए न पुण्य मर गया बोते-बोते।
कई मिले हैं लोग यहाँ पर मन के मैले
लग जाएंगी सदियां इन्हें धोते-धोते।
43 .
दिल लगा के दिल हटाना नहीं चाहिए।
किसी का दिल दुखाना नहीं चाहिए।
प्रेम जो करे आपसे उससे प्रेम करो
ऐसे प्रेम से मुँह फिराना नहीं चाहिए।
अग़र चाहने पर भी कोई न चाहे
ऐसे लोगों से दिल लगाना नहीं चाहिए।
मान दे अगर कोई गाना गा दीजिए
मान बिन गाना कभी गाना नहीं चाहिए।
प्रेम में प्रेम से प्रेम पा ही जाओगे
प्रेम में कभी भी लडखडाना नहीं चाहिए।
44 .
दिल चुरा कर नज़र चुराना, ठीक नहीं होता।
अपना बना कर फिर सताना, ठीक नहीं होता।
निभा सको जितने उतने, वादे करना सीखो
वादा करके मुकर जाना, ठीक नहीं होता।
दूर रहना ही था तो क्यों, नज़दीक में आये
नज़दीक आकर दूर जाना, ठीक नहीं होता।
हँसा-हँसा कर दुनियां को, प्रेम पुण्य कमाओ
रुला रुला कर पाप कमाना,ठीक नहीं होता।
मतलब में ही बस पीछे भागे वैसे भागे दूर
सच पूंछो तो ऐसा दीवाना ठीक नहीं होता।
मतलब में ही बस पीछे भागे वैसे भागे दूर
सच पूंछो तो ऐसा दीवाना ठीक नहीं होता।
45 .
जो नहीं हो वो ही, सब को बताते क्यों हो।
खुद की नज़र में खुद को, गिराते क्यों हो॥
जो मिलना होगा, मिल जायेगा वक्त पर।
वक्त से पहले आखिर, छटपटाते क्यों हो॥
असफल तुम ही नहीं, बहुत हुए हैं जहाँ में
असफलता ,पर दुःख को, मनाते क्यों हो॥
हार जीत सुख- दु ख, ये राही हैं जीवन के
इन से हौसला लो खुद को, रुलाते क्यों हो॥
तुम्हारे सिवा, तुम्हारे साथ, कोई नहीं प्रेम
लड़िये जंग खुद को, बेदम बनाते क्यों हो॥
-प्रेम फर्रुखाबादी
46 .
शायरी तो आती नहीं पर
शायर बनना चाहता हूँ
आशिकी तो आती नहीं
आशिक बनना चाहता हूँ
किस को दिल दूं जाकर
किस से दिल लूं जाकर,
दीवानगी तो आती नहीं
दीवाना बनना चाहता हूँ॥
हाय ढूँढूं कहाँ मैं उसको
दिल मेरा चाहे जिसको,
मस्ती तो आती नहीं
मस्ताना बनना चाहता हूँ॥
चाहत में जल जाऊँगा
जल करके मिट जाऊँगा,
तड़पन तो आती नहीं
परवाना बनना चाहता हूँ॥
-प्रेम फर्रुखाबादी
47.
सोच से बनता अमीर आदमी,
सोच से बनता गरीब ।
जैसी जिसकी सोच यहाँ,
वैसा उसका बनता नसीब।
बताओ कैसे सतायेंगे उसको ,
दुःख भला दुनिया के
प्यार मुहब्बत से रहता है,
जो भी अपनों के करीब।
जिस थाली में खाए ,
उसमें ही छेद करे वो जालिम
काम तो रकीबों का करे,
और बनता फिरता हबीब।
दौड़ दौड़ कर फिरे बनाता ,
जो सब के बिगडे काम
इस दुनिया का नहीं है,
जाने किस दुनिया का जीव।
48.
दस्तान ए दिल ग़र सुनाते तो किसे सुनाते।
कोई अपना न था बुलाते तो किसे बुलाते॥
गमों के सिवा जिंदगी में कुछ भी तो नहीं
गमों से भला हम दुखाते तो किसे दुखाते।
धरे के धरे रहे गये अरमान सब प्यार भरे
प्यार अपना अगर लुटाते तो किसे लुटाते।
मस्त बहारें आ के मस्त करके चली गयीं
साथ-साथ अपने घुमाते तो किसे घुमाते।
49.
कुछ लोग अपने घर में
होते हुए भी बेघर होते हैं।
यह तो वही जाने वो कहाँ
बैठते कहाँ पर सोते हैं॥
प्यार से वो देखते भी तो
भला कैसे अपने पति को
पति से ज्यादा तो प्यारे
उनको उनके जेवर होते हैं।
मजाल क्या कोई उनके
हुश्न की तारीफ भी कर दे
उन्हें देखो तो बड़ा ही
कमाल के उनके तेवर होते हैं।
देखने वाले तो देख ही
लेते हैं किसी न किसी तरह
दीदारे हुश्न को आशिक
सचमुच ही बड़े बेडर होते हैं
50.
तेरी सदा पर सदा,देता चला जाऊँगा।
हर मोड़ पर वफ़ा, देता चला जाऊँगा॥
तुझे हर ख़ुशी नसीब हो मेरे दिलवर
दिल से ऐसी दुआ, देता चला जाऊँगा॥
धूप में कहीं कुम्हला न जाये रूप तेरा
रूप पर ऐसी घटा देता चला जाऊँगा॥
हर हालात में जीती रहो अपनी जिंदगी
जीने की हर अदा, देता चला जाऊँगा॥
51.
बढ़ गये हैं आपस में इतने बैर।
जी रहे सब एक-दूजे के बगैर॥
जिसे भी देखिये बदहवास लगे
किसे अपना कहे तो किसे गैर।
हर कोई अपनी ही धुन में यहाँ
कोई डूबा रहा तो कोई रहा तैर।
कौन करे परवाह यहाँ किसकी
कौन पूछे किसको दो पल ठैर।
देख रहा है हर कोई घर में टीवी
बैठ गया सिकोड़ के अपने पैर।
तन-मन से दुखी हैं सबके सब
निकलता नहीं करने कोई सैर।
उलझा है हर कोई चिंताओं में
पूँछे नहीं कोई किसी की खैर।
52.
ऐ मेरे नादान दिल तू समझता क्यों नहीं।
जैसे चलती दुनिया वैसे तू चलता क्यों नहीं।
गल गयी दाल पूरी अच्छी तरह से मगर
रह कर दाल में भी तू गलता क्यों नहीं।
हर कोई छल कर तुझसे आगे बढ़ गया
छले जाने पर भी तू छलता क्यों नहीं।
बात मेरी समझने की कभी कोशिश कर
सभी फल गये मगर तू फलता क्यों नहीं।
53.
वो हैं बहुत दूर मगर दिल के बहुत पास-पास है।
ये खुशनसीबी दोनों की दोनों ही साथ-साथ है॥
उसकी खासियत एक नहीं कहो तो कई गिना दूँ
मैं उसके लिए खास हूँऔर वो मेंरे लिए खास हैं।
मेरे ख्यालों पर तो चलता है बस उसी का राज
उसके राज से ही बजे जिन्दगी का हर साज है।
उससे ही मेरा कल था उससे ही मेरा कल होगा
उसी की बदौलत ही तो फूलता-फलता आज है।
मैं उसकी सजनी और वो मेरा साजन सलोना
उसकी खुश्बू से ही महकता मेरा आंगन होगा।
एक दूजे के प्यार में दिल से डूबते चले जायेंगे
मस्ती में मुस्कराता हुआ ऐसा मेरा जीवन होगा।
54.
छोड़ कर मुझको इस तरह क्यों चल दिये यार।
कुछ कहा सुना भी नहीं क्यों निकल लिये यार॥
साथ जियेंगे साथ मरेंगे यह अरमान था हमारा
आखिर बात क्या हुई राह क्यों बदल लिये यार।
कैसे सहूँगा गम तेरी जुदाई का जहाँ में अकेले
मेरी ख्वाहिश को कहो यूं क्यों मसल दिये यार।
एक बार तो कहते कि अब तुम से जी भर गया
कहा कुछ किया कुछ ऐसा क्यों छल किये यार।
55.
जब से आप मुझमें समाने लग गये।
तब से रात-दिन मुसकाने लग गये।
भा गये एक दूजे को हम दिलों जां से
दिलों में हंसीं सपने सजाने लग गये।
यह हम जानते हैं और तुम जानते हो
पास आने में कितने ज़माने लग गये।
एक-दूजे को शुक्रिया कहना ही होगा
सही बिल्कुल अपने निशाने लग गये।
अपने चर्चे तो आम हो गये हैं जहाँ में
एक दूजे को सब लोग बताने लग गये।
56.
सारी उम्र किसी के सपने सजाता रहा।
उसकी चाह में आँसू अपने बहाता रहा।
पर वो नहीं मिला उसे नहीं मिलना था
बस उसको याद कर के पगलाता रहा।
मित्रों ने पूँछा कि इतने दीवाने क्यों हो
दिल चीर उसकी तसवीर दिखाता रहा।
प्यार का रिश्ता ही कुछ अजीब रिश्ता
इक तरफ़ा था प्यार मेरा निभाता रहा।
लोगों ने कहा ऐसी दीवानगी को छोड़ो
उनकी नहीं मानी अपनी चलाता रहा।
अपनी बातों से मैंने सबको बना दिया
पता चला कि खुद को ही बनाता रहा।
57.
कहीं मेरी जिन्दगी न यूँ ही गुजर जाये।
सोच सोच कर मुझको यही डर सताये।
दूर तक मुझे कोई अपना नहीं दिखता
कोई दिखे तो यह जिन्दगी सँवर जाये।
बड़े-बड़े अरमान हैं इस दीवाने दिल के
हाय कहीं ये मेरी धड़कन न ठहर जाये।
मन नहीं करता है तन्हा अब जीने को
आखिर यह मन जाये तो किधर जाये।
डूबे हुए हैं सब अपनी अपनी मस्ती में
किसको फ़िक्र कोई जिए या मर जाये।
58.
देखो मैं बेवफा नहीं हूँ यकीन कर लो ना।
मुहब्बत से जिन्दगी को हँसीन कर लो ना॥
कब तक यूँ ही धोखे खाते रहोगे यार तुम
थोड़ा अपने आप को जहीन कर लो ना॥
ये जिन्दगी क्या है गर समझना चाहो तुम
अपनी सोच समझ को महीन कर लो ना॥
बनजारों की तरह जीना भी कोई जीना
अपने नाम कहीं जरा जमीन कर लो ना॥
59.
मेरी तरह मिलने की कभी फरियाद कर।
जैसे मैं करता वैसे तू भी कभी याद कर॥
बताओ कब तक सहनी पड़ेगी ये जुदाई,
मुलाकात कर इस से कभी आज़ाद कर॥
मुझे उलझाकर क्यों खुद भी उलझ गये
छोड़ के गिले शिकवे कभी आबाद कर॥
पिछले शुभ कर्मों का फल है जिन्दगी ये
शाद रख प्रिये इसे न कभी नाशाद कर॥
60.
तुम क्यों हुए मुझ पर फ़िदा,
यह तुम जानो।
फूल क्यों तेरे दिल का खिला,
यह तुम जानो॥
शिकायत भरी नज़रों से मुझे
देखते रहते हो,
करते रहते क्यों सबसे गिला
यह तुम जानो॥
61.
चलता आज कल कोई रूल नहीं।
इसी लिए व्यवस्था अनुकूल नहीं॥
भूल कोई अपनी भूल नहीँ माने
काम भी करे कोई माकूल नहीं।
है परेशान हर कोई हर किसी से
क्योंकि सुविधायें कहीं मूल नहीं।
सुनने से पहले ही हो जाते गरम
बोलो जिससे भी वही कूल नहीं।
62..
पाने की चाह में खोया बहुत।
हंसने की चाह में रोया बहुत॥
सागर में मोती मिल ही जायेंगे
इसी लिए खुद को डुबोया बहुत॥
इंसानियत कहीं बिखर न जाये
प्यार में सब को पिरोया बहुत॥
उसकी जुदाई अब सही न जाए
याद में आँखों को भिगोया बहुत॥
महके जहां फूलों की खुशबू से
फूलों को जीवन में बोया बहुत॥
ठुकरा कर कहीं वो चले न जायें
इस लिए उनके नखरे ढोया बहुत॥
63.
उन्हीं से उन्हीं का,
शिकवा करने चला हूँ।
आज खुद ही अपनी ,
मौत मरने चला हूँ॥
कहते हैं कहने से,
मन हलका हो जाये
कह नहीं पाया शायद
इसी लिए मैं जला हूँ।
पीट कर वक्त ने,
मुझे पत्ता बना दिया
जैसे ढ़ाला वक्त ने,
वैसे ही मैं ढ़ला हूँ।
क्या-क्या रंग नहीं
दिखलाये जिंदगी ने
ठोकरें खा-खा कर
दिन-रात मैं पला हूँ।
मत पूँछिये कि खाक
कहाँ कहाँ नहीं छानी
तब कहीं ज़ाकर मैं
इतना फूला-फला हूँ।
64.
कर लो यकींन मुझ पर
प्यार मेरा झूठा नहीं है।
इतना सताया फिर भी देखो
ऐतबार मेरा टूटा नहीं है॥
कसम तेरी तू क्या जाने
हाय कितना तुझे मैं चाहूँ।
हर पल तेरी याद आये
कोई पल छूटा नहीं है॥
एक दिन वो आएगा जब
तुम महसूस करोगी मुझको।
मुझको पता है मेरा मुकद्दर
अब तक रूठा नहीं है॥
जब तक सांस रहेगी मेरी
चाहा तुम्हें चाहते ही रहेंगे।
देखे तो लाखों हसीं पर
तुझसा कोई सूझा नहीं है॥
तुम ही मेरी पहली चाहत
कैसे मैं भूल जाऊँ तुम्हें।
प्यार मेरा है एक फुलवारी
प्यार मेरा बूटा नहीं है॥
-प्रेम फर्रुखाबादी
65.
प्यार का मुझपे ऐसा असर हुआ।
तन मन धन सब नज़र हुआ॥
न रहा खुद का कोई होश
प्यार में यूँ तर- बतर हुआ॥
पता ही न चला मुझे प्यार में
कब रात हुई कब सहर हुआ॥
नशा प्यार का एक ऐसा नशा
उजड़ कर जैसे मैं खंडहर हुआ॥
किसी को यहाँ पर मिलन तो
किसी को हासिल जहर हुआ॥
अब आपको क्या बताएं हम
दिल मदहोश इस कदर हुआ॥
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-01-2019 ) को "विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक - 3576) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
अनीता लागुरी"अनु"
बहुत सुन्दर
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