शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

आखिर मोहब्बत को क्यों समझेगा जमाना


आखिर मोहब्बत को क्यों समझेगा जमाना।
           न समझना जमाने का रहा अन्दाज पुराना।

मोहब्बत करने वाले मिटे मोहब्बत न मिटी
          मुश्किल है दुनियां से मोहब्बत को मिटाना।

शायद फले-फूले मोहब्बत चोरी-चोरी से ही
         मोहब्बत गर करोगे तो प्यारे पड़ेगा छुपाना।

मोहब्बत की दुश्मन है ये दुनियां सदियों से
         नहीं माना वो जो हुआ मोहब्बत में दीवाना।


5 टिप्‍पणियां:

  1. मोहब्बत पर लिखी एक उम्दा ग़ज़ल.
    शुक्रिया!!
    मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है.
    मोहब्बत मोहब्बत मोहब्बत मोहब्बत
    हर शख्स को मिले ऐसी चाहत कीजिये
    दूर दिलों तक पहुंचे 'सुलभ' तेरे अलफ़ाज़
    मोहब्बत में यारो खतो-किताबत कीजिये

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  2. मोहब्बत करने वाले मिटे मोहब्बत न मिटी
    मुश्किल है दुनियां से मोहब्बत को मिटाना।

    सच कहा ,.... मुहब्बत को मिटाना आसान नही ...

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  3. bilkul sahi baat kahi hai aapne.iske baareme do laine kahana chahungi-----------

    jamane rusawa kiya hai hame par hame unse koi shikayat nahi hai.

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  4. भाई जी!
    "मोहब्बत में बेकार अब डाकखाना ।
    गया प्रेम पत्रों का गुजरा जमाना ॥
    सुना वो मोबाइल धरे गाल पर हैं।
    जिसे डूंढ़ते हो वो मिस काल पर हैं॥"
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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