कल जो दोस्त थे वो आज दुश्मन बने बैठे हैं।
दिलो दिमाग की वो आज उलझन बने बैठे हैं॥
दिल से उन्हें निकलना भी चाहूँ तो निकालूँ कैसे,
दिल की सचमुच वो आज धड़कन बने बैठे हैं॥
सकून अब मिलने वाला नहीं दीवाने दिल को,
दीवाने दिल की वो आज तड़पन बने बैठे हैं॥
काश! उनको होश होता अपने इस गुनाह का,
अपने गुनाहों का वो आज दरपन बने बैठे हैं॥
बहुत खूब, प्रेम भाई.
जवाब देंहटाएंइस जमीनी गजल को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
वाह जी ! बढ़िया ग़ज़ल है !
जवाब देंहटाएंकाश! उनको होश होता अपने इस गुनाह का
जवाब देंहटाएंअपने गुनाहों का वो आज दरपन बने बैठे हैं।
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/