दिल चुराकर नजर चुराना ठीक नहीं होता।
अपना बनाके फिर सताना ठीक नहीं होता।
निभा सको जितने उतने वादे करना सीखो
वादा करके मुकर जाना ठीक नहीं होता।
दूर जाना ही था तो नजदीक में क्यों आये
नजदीक आकर दूर जाना ठीक नहीं होता।
होता बहुत जरूरी प्यार में पीछे पड़े रहना
पीछे पड़कर पीछा छुड़ाना ठीक नहीं होता।
साथ में जीने मरने की पहले कसमें खाकर
वो कसमें दिल से भुलाना ठीक नहीं होता।
तुम क्या जानो तुम बिन कैसे कैसे जिया हूँ
दीवाने के दिल को रूलाना ठीक नहीं होता।
जीवन जीना है तो रोज दोस्त बनाते जाओ
रोज - रोज दुश्मन बनाना ठीक नहीं होता।
पुण्य कमाते जाओ लोगों को हँसा हँसाकर
रुला रुलाकर पाप कमाना ठीक नहीं होता।
दिल से दिल मिल जाये तो प्यार पनपता है
दिल दुखाकर नफरत पाना ठीक नहीं होता।
कभी चैंन नहीं पाया मैंने जिये तेरी जुदाई में
दिल लगाके दिल को दुखाना ठीक नहीं होता।
बिन सोचे समझे ही आ जाओ मेरी बाँहों में
दिल दीवाने को यूँ तरसाना ठीक नहीं होता।
वाह जी ! क्या तड़प है ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह! प्रेम जी, बढ़िया कविता लिखी है... शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएं"रामकृष्ण"
aanandam
जवाब देंहटाएंAPNI MAATI
MANIKNAAMAA
जीवन जीना है तो रोज दोस्त बनाते जाओ
जवाब देंहटाएंरोज - रोज दुश्मन बनाना ठीक नहीं होता।
achchi seekh di in panktiyon ne...
जुदाई के एहसास समेटे, मीठा उल्हाना देती सुंदर रचना है प्रेम जी .....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अहसासों से सरोबार गजल | दिल को छू गई जनाब प्रेम साहब..सच में..बहुत बधाई और कोटिश: आभार इतनी उम्दा गजल से रूबरू करवाने के लिये |
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