प्यार जताने का मुझको बिल्कुल शऊर न था।
जिसको वह समझ बैठी मेरा कसूर न था॥
सिवा मेरे किसी की वह हो नहीं सकती
मेरा उसपे पूरा यकीं था मेरा फितूर न था।
मेरी मुहब्बत का उसने कभी जवाब नहीं दिया
कुछ तो कही होती मैं कभी दूर न था॥
हर पल रहती तसवीर उसकी मेरी आँखों में
ऐसा पल न गुजरा उसका सरूर न था।
मदहोश था फिर भी होश में जीता रहा
पगलाता फिरता इतना तो मैं चूर न था॥
उसके बगैर ख्वाब मेरा टूट कर बिखर गया
प्यार निभाने के लिए मैं मजबूर न था।
उसका प्यार पाने की हमेशा मेरी ख्वाहिश रही
वह कभी पास न थी मैं कभी दूर न था॥
वाह प्रेम जी बढ़िया रचना ...
जवाब देंहटाएंमेरी मुहब्बत का उसने कभी जवाब नहीं दिया
कभी वह कुछ तो कही होती मैं कभी दूर न था।
क्या बात है ...!
बहुत ही शानदार रचना!
जवाब देंहटाएंबधाई!
bahut khub
जवाब देंहटाएंbadhai is ke liye aap ko
bahut khub
जवाब देंहटाएंbadhai is ke liye aap ko