न वो पास आते हैं ना वो पास बुलाते हैं।
न वो कुछ सुनते हैं ना वो कुछ सुनाते॥
उनका चुप रहना अब तो सहन नहीं होता
उन्हें बहलाने को जब कि खूब घुमाते हैं॥
जाने कहाँ खोये रहते जब भी देखो उन्हें
उनके सजदे में जब-जब खुदको झुकाते हैं॥
कभी आँख से आँख मिली ही नहीं उनसे
दिल दुखता है जब मुझसे आँख चुराते हैं॥
बिना बात किये दो दिल एक नहीं होते
जाने क्यों खुदको वो मुझसे छुपाते हैं॥
उनसे कहा एक दूजे को भूल ही जाएँ
न वो खुदको भूलते हैं न मुझको भुलाते है॥
बड़ा ही मुश्किल हुआ मुझे उनको समझना
कभी खुद रोते हैं तो कभी मुझे रुलाते है॥
उनकी इन्हीं अदाओं पर तो मैं मरता हूँ
न गुदगुदी होती है उन्हें न वो गुदगुदाते हैं॥