दूरी तेरी अब सही नहीं जाती।
बात दिल की कही नहीं जाती॥
समझ सको तो समझ जाओ न
देखो मुझे अब और तरसाओ न॥
जो भी देखता पागल कहता है
चाह में मुझे घायल समझता है।
जो भी समझे समझे ये जमाना
मुश्किल बड़ा बिन तेरे जी पाना।
किसी से लेता कोई भी सलाह
न सुनता न करता कोई परवाह।
दिल की बात को दबाये रहता हूँ
दिल ही जानता कैसे सहता हूँ।
न जाने तुम क्यों खफा हो गए
कहो प्रिये क्यों बेवफा हो गए।
मेरा कसूर बताओ कम से कम
कहीं निकल ना जाये मेरा दम।
बहुत हो चुका मान भी जाओ
हालत दिल की जान भी जाओ।
माफ़ करने वाले बहुत बड़े होते
माफ़ी देने से वो छोटे नहीं होते।
दूरी तेरी अब सही नहीं जाती।
बात दिल की कही नहीं जाती॥
समझ सको तो समझ जाओ न
देखो मुझे अब और तरसाओ न॥
बहुत हो चुका है अब मान भी जाओ
जवाब देंहटाएंमेरे दिल की हालत जान भी जाओ।
माफ़ी माँगनेवाले से देनेवाले बड़े होते
माफ़ी देने वाले कभी छोटे नहीं होते ...
सच कहा प्रेम जी ........ पर वो इतनी आसानी से माफ़ करें तब ना ..........
बहुत अच्छी रचना है ........
थोडा आना जाना शुरू करो प्रेम भाई
जवाब देंहटाएंफिर कैसी दूरियां, कैसी दिलों में खाई।
PREM KI KAVITA TO ACHCHI HI HOTI HAIN JI.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
bahut manmohak prem kavita...
जवाब देंहटाएंbeautiful poem
जवाब देंहटाएंkehna bhi nahi aata
jatana bhi nahi aata
प्रेम जी रोमांटिक रचनाएँ रचने में आपका जवाब नहीं...बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंनीरज
दिल की बात तो दिलवाले ही जैने!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!