शनिवार, 9 जनवरी 2010

दूरी तेरी अब सही नहीं जाती

दूरी तेरी अब सही नहीं जाती।
बात दिल की कही नहीं जाती॥ 
समझ सको तो समझ जाओ न 
देखो मुझे अब और तरसाओ न॥

जो भी देखता पागल कहता है
चाह में मुझे घायल समझता है।
जो भी समझे समझे ये जमाना
मुश्किल बड़ा बिन तेरे जी पाना।

किसी से लेता कोई भी सलाह
न सुनता न करता कोई परवाह। 
दिल की बात को दबाये रहता हूँ
दिल ही जानता कैसे सहता हूँ।

न जाने तुम क्यों खफा हो गए
कहो प्रिये क्यों बेवफा हो गए।
मेरा कसूर बताओ कम से कम
कहीं निकल ना जाये मेरा दम।

बहुत हो चुका मान भी जाओ
हालत दिल की जान भी जाओ।
माफ़ करने वाले बहुत बड़े होते 
माफ़ी देने से वो छोटे नहीं होते।

दूरी तेरी अब सही नहीं जाती।
बात दिल की कही नहीं जाती॥ 
समझ सको तो समझ जाओ न 
देखो मुझे अब और तरसाओ न॥


8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत हो चुका है अब मान भी जाओ
    मेरे दिल की हालत जान भी जाओ।
    माफ़ी माँगनेवाले से देनेवाले बड़े होते
    माफ़ी देने वाले कभी छोटे नहीं होते ...

    सच कहा प्रेम जी ........ पर वो इतनी आसानी से माफ़ करें तब ना ..........
    बहुत अच्छी रचना है ........

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  2. थोडा आना जाना शुरू करो प्रेम भाई
    फिर कैसी दूरियां, कैसी दिलों में खाई।

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  3. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत बहुत आभार

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  4. प्रेम जी रोमांटिक रचनाएँ रचने में आपका जवाब नहीं...बहुत खूब...
    नीरज

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  5. दिल की बात तो दिलवाले ही जैने!
    बहुत सुन्दर रचना!

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