लाखों में हँसीं जानम चेहरा यह तुम्हारा।
तभी तो दिल ने तुझको दिल में उतारा।
मौसम की तो तुम्हें दाद ही देनी चाहिए
प्यार से जिसने तुम्हारा रूप ये निखारा।
पहली ही नज़र में मैं तो होश गवां बैठा
पता ही नहीं चला दिल तुझपे कब हारा।
हर अदा तुम्हारी लुभाती है दिल को प्रिये
लगता यह अंदाज़ तेरा सबसे ही न्यारा।
ख्वाहिश है दिल की ये रहूँ तेरे आस पास
इस तरह तूने मुझे दिलो-दिमाग से मारा।
मौसम की तो तुम्हें दाद ही देनी चाहिए
जवाब देंहटाएंप्यार से जिसने तुम्हारा रूप ये निखारा।
-क्या बात है प्रेम भाई..बढ़िया.
"लाखों में हँसीं जानम ग़ज़ल यह तुम्हारी!"
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मिलत, खिलत, लजियात ... ... ., कोहरे में भोर हुई!
लगी झूमने फिर खेतों में, ओंठों पर मुस्कान खिलाती!
संपादक : सरस पायस
ख्वाहिश है दिल की ये रहूँ तेरे आस पास
जवाब देंहटाएंइस तरह तूने मुझे दिलो-दिमाग से मारा।
wah kya baat hai , dilo dimaag se maara.
प्रेम जी
जवाब देंहटाएंशब्दों के अच्छे तालमेल से रची सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार
पहली ही नज़र में मैं तो होश गवां बैठा
जवाब देंहटाएंपता ही नहीं चला दिल तुझपे कब हारा ...
हसीनों की ये अदा भी खूब है . पता ही नही चलता और इंसान दिल हार जाता है ......... मज़ा आ गया ......
लाखों में हँसीं जानम चेहरा यह तुम्हारा।
जवाब देंहटाएंतभी तो दिल ने तुझको दिल में उतारा।
सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति।
सुन्दर गजल के लिए बधाई!
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