शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

बड़ी मछली छोटी को खाए जा रही है


बड़ी मछली छोटी को खाए जा रही है।
           दुनिया बस ऐसे ही चलती जा रही है।

कमजोरों पर जुल्म सदा होते ही आए
          यह दुनिया आज भी जुल्म ढा रही है।

अभी तो ढंग से हम जी भी नहीं पाए 
           कि जिन्दगी मेरी हाथों से जा रही है।

उसकी खूबसूरती का कोई जवाब नहीं
       जब देखो तब ही वो दिल को भा रही है।

उसको मनाने की तो कोशिश बहुत की
        मगर उसके मुँह पे हमेशा ही ना रही है।

हक़ मांगो तो तकलीफ होती है उनको
        हमारी सरकार हमको ही ठुकरा रही है।

मुनाफा कमा के हो गए वो नम्बर वन
        कर्मचारियों की हालत लड़खड़ा रही है।

11 टिप्‍पणियां:

  1. हक़ मांगो तो तकलीफ होती है उनको
    हमारी सरकार हमको ही ठुकरा रही है।

    मुनाफा कमा के हो गए वो नम्बर वन
    कर्मचारियों की हालत लड़खड़ा रही है।

    एकदम सच, सच के सिवा और कुछ भी नहीं.
    बधाई.

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  2. उसको मनाने की तो कोशिश बहुत की
    मगर उसके मुँह पे हमेशा ही ना रही है।
    एक बार फिर से मनाइए जनाब! उनके ना मे ही तो हा होती है
    बड़ी मछली छोटी को खाए जा रही है।
    यह दुनिया ऐसे ही चलती जा रही है।
    बहुत खूब

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  3. हक़ मांगो तो तकलीफ होती है उनको
    हमारी सरकार हमको ही ठुकरा रही है।
    aaj ki duniya me sab bada ajeeb ho gaya hai..haq to mil hi nahi pata hai..

    badhiya kavita..badhayi

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  4. अभी तो हम ढंग से जी भी नहीं पाए
    यह जिन्दगी है कि हाथों से जा रही है
    - बहुत खूब !

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  5. हक़ मांगो तो तकलीफ होती है उनको
    हमारी सरकार हमको ही ठुकरा रही है।

    मुनाफा कमा के हो गए वो नम्बर वन
    कर्मचारियों की हालत लड़खड़ा रही है।

    सुन्दर कविता के इन शब्दों के लिए.
    बधाई!

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  6. इतना सुंदर रचना लिखा है आपने कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर गए!

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  7. मेरा हौसला बढाने के लिए आप सभी ब्लागर मित्रों का दिल से धन्यबाद !!

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