शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

हमने पड़ोसी से दोस्ती की चाह की


हम ने पड़ोसी से दोस्ती की चाह की।
               
 पर उसने न हमारी कोई परवाह की॥

हम अच्छे रिश्ते बनना चाहते हैं उस से
दुनिया ये जानती है हम कह रहे कब से
            कारगिल में घुसने की उसने गुनाह की॥

सोचा था इंसानियत को मिल के पूजेंगे
दिलों में मुहब्बत को हम खुल के ढूँढेंगे
            मगर पड़ोसी ने हमेशा हम से डाह की॥

इल्जाम लगाना उसकी है पुरानी आदत
इसी बात पर हम को है उससे शिकायत
           जहाँ में उसने हमारी बड़ी अफवाह की॥

हम को अपने पड़ोसी से नहीं है नफरत
मगर उसके दिल में जरा नहीं है उल्फत
           बात बने इस लिए हमने आउ जाउ की॥

हमें लगता पड़ोसी में कोई चेतना नहीं
इंसानियत की खातिर कोई वेदना नहीं
             हम ने हमेशा ही उसकी वाह-वाह की॥

हम से टकरा के उसको पछताना होगा
दोस्ती से ही रिश्ता अच्छा बनाना होगा
            हम ने हमेशा मिलने की सरल राह की॥

दुश्मनी की राहों से उसको मुड़ना होगा
 साथ-साथ तभी दोनों का चलना होगा
            हम ने जब की मुहब्बत की निगाह की॥ 














9 टिप्‍पणियां:

  1. हमने पड़ोसी से दोस्ती की चाह की ।
    पर उसने न हमारी कोई परवाह की।
    बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. बहुत ही लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. दुश्मनी की राहों से उसको मुड़ना होगा
    तभी साथ-साथ दोनों का चलना होगा
    बेहतरीन कहा है.

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  4. आपकी हर रचना बेमिसाल है!

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  5. are prem ji,padosi ki niyat hi sahi nahi hai..wo hamse dosti karana hi nahi chahata..

    dekhate hai..aur bhi bahut raste hai..
    badhiya irada jataya aapne padosi se..

    dhanywaad

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