बुधवार, 22 जुलाई 2009

रात पिया ने बड़ा तंग कियो रे


रात पिया ने बड़ा तंग कियो रे
         कैसे कहूँ जो मेरे संग कियो रे

पल भर उसने सोने न दिया रे
      रोना चाहा पर रोने न दिया रे
         ऐसे लड़ा वो जैसे जंग कियो रे

अपनी ही धुन में खोया रहा वो
    कुछ न सुनी हाय मैंने कहा जो
      दैया हाल बड़ा ही बेढंग कियो रे

बहुत बचाया पर बचा नहीं पाई
   उसकी पकड़ को छुडा नहीं पाई
      ढीला हर एक उसने अंग कियो रे

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना --
    पर यह थानेदारी कब से शुरू कर दी आपने? कर भी दी तो उस बेचारे पति की तरफदारी तो कर देते.

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  2. majedaar kissa..
    fir bhi thanedaar ko bich me nahi aana tha aakhir mamla pati aur patni ke bich ka tha..par kya kare ek mahila ki shikayat ko sab prathmikata dete hai..
    badhiya..dhanywaad

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ बड़े ही सुंदर रूप से आपने घटना को प्रस्तुत किया है! बहुत अच्छा लगा!

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  4. बहुत ही धारदार व्यंग मारा है कानून पर, भविष्य में ऐसे भी केस आ सकते हैं थाने में इसकी एक झलक तो आप दिखला ही गए....................
    बधाई स्वीकार करें..........किसी को भी थाने में सपोर्ट न कर हम सब को आगाह करने की.

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  5. मेरा हौसला बढाने के लिए आप सभी ब्लागर मित्रों का दिल से धन्यबाद !!

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