शुक्रवार, 28 मई 2010

कभी ख़ुशी से जीने का मन किया करो

कभी ख़ुशी से जीने का मन किया करो।
     मन अच्छा न हो तो भजन किया करो॥

नज़र कमजोर हो गयी हो तो क्या हुआ
  सोने से पूर्व आँखों में अंजन किया करो॥

सही गलत का फैसला अगर न हो सके 
      शांति से बैठ मन में मंथन किया करो॥
 
कभी इससे कभी उससे काम न चलेगा
किसी के हों खुद का समर्पण किया करो॥ 

मनोदशा शुध्द सरल तब ही रह सकती 
 रोज अच्छे साहित्य का सेवन किया करो॥ 

रविवार, 16 मई 2010

जो मीठे दो बोल बोलना सीख गया

जो मीठे दो बोल बोलना सीख गया।
        जीवन में रस वो घोलना सीख गया॥

खुशी खुशी खुशी बांटना आसान नहीं
      इन्सान आखिर इन्सां है भगवान नहीं
जो टूटे दिल को जोड़ना सीख गया।
       जीवन में वो रस घोलना सीख गया॥ 

कब कैसे अपनों गैरों से पेश आना है
     उसका होके अपने अनुरूप बनाना है
जो अपने ही बोल तोलना सीख गया।
       वो जीवन में रस घोलना सीख गया॥ 

कौन जिसको किसी ने नहीं ठुकराया
     कौन ऐसा जिस पर दुःख नहीं आया
जो दुःख से मुख मोड़ना सीख गया
     वो जीवन में रस घोलना सीख गया॥ 



शुक्रवार, 7 मई 2010

वो ख़ुदको खुदा तो वो खुदको ख़ुदी समझती है


वो ख़ुदको खुदा तो वो खुदको ख़ुदी समझती है।
    इसीलिए उन दोनों की आपस में नहीं पटती है।

एक पश्चिम दिशा को जाता है तो एक पूरब को
    जब कभी भी उन दोनों में कोई बात चलती है।

प्यार की जगह दोनों नफरत पाल के बैठ जाते
    इधर वो हाथ मलता है उधर वो हाथ मलती है।

ऐसा नहीं उनके दिलों में नफरत ही नफरत हो
  अकेले में दोनों को एक दूजे की कमी खलती है।

उन दोनों की निभे तो भला कैसे निभे बतलाओ
  न तो वो उससे झुकता है न वो उससे झुकती है।

रविवार, 2 मई 2010

कह दो ये मेरे दिलवर, हम हो गये तुम्हारे

कह दो यह दिलवर मेंरे कि हम हो गये हैं तुम्हारे
जिंदगी अकेले संवरती नहीं कोई आकर इसे संवारे

मस्त हवा सी चलने लगी,तन मन जैसे हरने लगी
बाँहों में मेरी आ जाओ ,दिल मेरा यह तुम्हें पुकारे। 
जिंदगी अकेले संवरती नहीं कोई आकर इसे संवारे

एक दूजे के हो जाएँ हम,एक दूजे में खो जाएँ हम
फिर मिलें या न मिलें,हम को ये खुश्बू और नज़ारे।
जिंदगी अकेले संवरती नहीं कोई आकर इसे संवारे

प्यार बिना कोई जीना है,मैं ही नहीं कहता जहाँ है 
खुशियाँ उसी को मिलीं हैं, प्यार में जो भी लुटा रे।
जिंदगी अकेले संवरती नहीं कोई आकर इसे संवारे

शनिवार, 1 मई 2010

प्यार जताने का मुझको बिल्कुल शऊर न था


प्यार जताने का मुझको बिल्कुल शऊर न था।
         जिसको वह समझ बैठी मेरा कसूर न था॥

सिवा मेरे किसी की वह हो नहीं सकती
        मेरा उसपे पूरा यकीं था मेरा फितूर न था।
मेरी मुहब्बत का उसने कभी जवाब नहीं दिया
             कुछ तो कही होती मैं कभी दूर न था॥

हर पल रहती तसवीर उसकी मेरी आँखों में
            ऐसा पल न गुजरा उसका सरूर न था।
मदहोश था फिर भी होश में जीता रहा
           पगलाता फिरता इतना तो मैं चूर न था॥

उसके बगैर ख्वाब मेरा टूट कर बिखर गया
             प्यार निभाने के लिए मैं मजबूर न था।
उसका प्यार पाने की हमेशा मेरी ख्वाहिश रही
          वह कभी पास न थी मैं कभी दूर न था॥

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

एक नहीं मैंने कई एक झटके खाये है


एक नहीं मैंने कई एक झटके खाये है।
         तब कहीं जाकर यहाँ तक पहुँच पाए हैं॥ 

उमर भर उनके सिर्फ नखरे ही उठाते रहे
      तब कहीं जाकर के दोस्त वो मुसकराये हैं॥

गर मिले गये वो तो शुक्रिया खुदा का
   वरना अगले जन्म की दोस्त आस लगाये हैं॥

मेरी साँसे इस बात की गवाह बनी हुई
             बस वो ही वो मेरी साँसों में समाये हैं॥ 

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ख़ुशी से जीने की खातिर मन भी किया करो

ख़ुशी से जीने की खातिर मन भी किया करो।
ख़ुशी अगर न मिले तो भजन भी किया करो॥ 

हो गयी हो कमजोर नजर तो सुनिये मेरी बात       
सोने से पहले आँखों में अंजन भी किया करो। 

सही गलत का गर फैसला न हो पाये आपसे
बैठ अकेले कहीं चिन्तन मंथन भी किया करो। 

देखो कभी इससे कभी उससे काम न चलेगा 
किसी का होना है तो समर्पण भी किया करो। 

मनोदशा तभी तुम्हारी शुध्द सरल रह पाएगी 
कभी शुद्ध साहित्य का सेवन भी किया करो॥ 

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

दिल चुराकर नजर चुराना ठीक नहीं होता


दिल चुराकर नजर चुराना ठीक नहीं होता।
     अपना बनाके फिर सताना ठीक नहीं होता।

निभा सको जितने उतने वादे करना सीखो
        वादा करके मुकर जाना ठीक नहीं होता।

दूर जाना ही था तो नजदीक में क्यों आये
     नजदीक आकर दूर जाना ठीक नहीं होता।

होता बहुत जरूरी प्यार में पीछे पड़े रहना
   पीछे पड़कर पीछा छुड़ाना ठीक नहीं होता। 

साथ में जीने मरने की पहले कसमें खाकर
     वो कसमें दिल से भुलाना ठीक नहीं होता।

तुम क्या जानो तुम बिन कैसे कैसे जिया हूँ
   दीवाने के दिल को रूलाना ठीक नहीं होता।

जीवन जीना है तो रोज दोस्त बनाते जाओ
      रोज - रोज दुश्मन बनाना ठीक नहीं होता।

पुण्य कमाते जाओ लोगों को हँसा हँसाकर
    रुला रुलाकर पाप कमाना ठीक नहीं होता।

दिल से दिल मिल जाये तो प्यार पनपता है
   दिल दुखाकर नफरत पाना ठीक नहीं होता।

कभी चैंन नहीं पाया मैंने जिये तेरी जुदाई में
  दिल लगाके दिल को दुखाना ठीक नहीं होता।

बिन सोचे समझे ही आ जाओ मेरी बाँहों में
    दिल दीवाने को यूँ तरसाना ठीक नहीं होता।



रविवार, 18 अप्रैल 2010

कभी वो मुझे ओढ़ते हैं तो कभी मुझे बिछाते हैं।


कभी वो मुझे ओढ़ते हैं तो कभी मुझे बिछाते हैं।
  अपनी मुहब्बत को मुझे कई ढंग से दिखाते हैं।

हम नहीं होते तो उन पर दुःख का पहाड़ टूटता
   मालूम नहीं मेरे बगैर दिन रात कैसे बिताते हैं।

मुँह से बात निकली कि आज तो ये चीज़ खाना
 जरा सी देर में वो चीज़ लाकर मुझे खिलाते हैं।

कोई अगर मदभरी आँखों से देखना भी चाहे तो
  सामने आकर वो उन नज़रों से मुझे छिपाते हैं।

उनका प्यार तो जहाँ में सबसे अलग ही लगता 
हर पल हर घड़ी मुझे नये-नये ढंग से रिझाते हैं।
  

कल जो दोस्त थे वो आज दुश्मन बने बैठे हैं

कल जो दोस्त थे वो आज दुश्मन बने बैठे हैं।
      दिलो दिमाग की वो आज उलझन बने बैठे हैं॥

दिल से उन्हें निकलना भी चाहूँ तो निकालूँ कैसे,
      दिल की सचमुच वो आज धड़कन बने बैठे हैं॥

सकून अब मिलने वाला नहीं दीवाने दिल को,
        दीवाने दिल की वो आज तड़पन बने बैठे हैं॥

काश! उनको होश होता अपने इस गुनाह का,
       अपने गुनाहों का वो आज दरपन बने बैठे हैं॥