शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

गर हिन्दोस्तान में भ्रष्ट अफसर न होते


गर हिन्दोस्तान में भ्रष्ट अफसर न होते
लोगों को रुलाते भी तब भी वो न रोते।
ये कमीशन खाने के लिए खूब उकसाते
परसेंट से खाते हैं और सबको खिलाते।

जब इच्छा होती तब अपने दफ्तर जाते
जब इच्छा होती तब वो अपने घर आते।
ये
कभी डरते नहीं मगर सभी को डराते 
हाँ हजूरी करते नहीं हर किसी से कराते।

हमेशा ही सबको अपना रुतबा दिखाते
गर कोई न देखे तो 
उसे सबक सिखाते।

सरकारी अफसरों के तो मजे ही मजे हैं
क्योंकि मजे करने में बिल्कुल 
ही मजे हैं।


जिम्मेदारी लेते बहुत कम पर देते जादा
ये अफसर नहीं 
हैं आज के ये महाराजा।

प्रजातंत्र में अफसरों को पूरी आजादी है
कानून को तोड़ने मरोड़ने के ये आदी हैं।

जो भी इन के मन भाता ये वही करते हैं
फायदे की बातों पे ही ध्यान 
को धरते हैं।

कहते हैं कि जनता समस्याएं नेता जाने
वो  
ही जाते जनता के आगे हाथ फैलाने।


अफसर जनता के सामने कभी न जायें
फिर उनके लिए 
वो तकलीफ क्यों उठायें।

उनका सहारा उनकी किस्मत उनका खुदा
सीनियर अफसरों ने 
ये  विदाई में कहा है।


सरकारी धन खाने में ये अफसर माहिर हैं
ओखली के भीतर चोट के मगर  बाहिर हैं।
इनसे पंगा लेना मतलब 
आ बैल मुझे मार

बस जपा करें मंत्र जय हो प्रजातंत्र सरकार। 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

जैसा बोओगे दोस्त वैसा ही काटोगे


जैसा बोओगे दोस्त वैसा ही काटोगे।
दिल में ग़र होगा प्यार तो ही बाँटोगे॥

हुनर है तभी कुछ कर पाओगे वरना
उमर भर किसी के तलवे ही चाटोगे।

पहले ख़ुद सुधर जाओ फ़िर सुधारो
सुधरे बिना किसी को कैसे सुधारोगे।

दुश्मन दोस्त कौन समझना मुश्किल
ज्ञान बिना दुश्मन दोस्त कैसे छांटोगे।

अगर दुश्मनी निभाने से फुर्सत मिले
तब ही दिल से दिल की दूरी पाटोगे।




रविवार, 18 अक्तूबर 2009

ओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा


ओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा
तेरी हरकतों से हो न,जीना मुश्किल मेरा

दिल मेरे, सुन जरा, मत हो,यूँ फ़िदा।

जिसको भी तू देखे,हो जाए क्यों दीवाना
हाय,तेरी खातिर मुझको,पड़ता घबराना
मान जा मेरा कहना,सच कहता हूँ वरना
कहीं तेरी वजह 
न हो जाए कोई लफडा। 
दिल मेरे, सुन जरा, मत हो यूँ फ़िदा।

समझा समझा के मैं,तुझको थक गया हूँ
तेरी कसम मैं तो,बिल्कुल ही पक गया हूँ
क्या हैं तेरे इरादे,तू मुझको यह बतला दे
बहुत सता लिया तूने,अब और न सता।
 

दिल मेरे, सुन जरा, मत हो,यूँ फ़िदा












शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

दिल से जो होता है, जग में सभी का

पैरोडी

है दुनियां उसी की जमाना उसी का...


दिल से जो होता है, जग में  सभी का।

उसको ही कहते हैं, फ़रिश्ता जमीं का॥


भला जो करेगा, भला उसका होगा 

उसके  पीछे  पीछे, हर  कोई  होगा 

आदमी वही करे जो,भला आदमी का।

उसको ही कहते हैं, फ़रिश्ता जमीं का।


गैरों के दुःख को, जो अपना बना ले

प्यार  से  बढ़  कर, गले  से लगा ले

करे  दूर दुःख जो, हर एक  दुखी का।

उसको ही कहते हैं,फ़रिश्ता जमीं का।


जो नफ़रत मिटा के,मुहब्बत सिखा दे

मुहब्बत से सबको, मुहब्बत सिखा दे 

चखा  दे  मज़ा  जो, इस  जिंदगी का।

उसको ही कहते हैं, फ़रिश्ता जमीं का।








मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

इस तरह तुम बसे मेरी आँखों में


इस तरह तुम बसे मेरी आँखों में
तेरी खुश्बू सी लगे मेरी सांसों में॥ 

खाने को खाया है मीठा तो बहुत 

उतना कहाँ जितना तेरी बातों में

दिन तो गुजर ही जाते जैसे-तैसे
पर खले जुदाई तेरी मेरी रातों में

कुछ भी नहीं सुहाता है बगैर तेरे 
लेकर देखूं तसवीर तेरी हाथों में

लगा हुआ है पहरा चारों तरफ़ से 
जीता मैं ज्यों जीभ मेरी दाँतों में। 

तेरे जैसा नहीं होगा जादूगर कोई
दिल मेरा गया तेरी मुला
कातों में













रविवार, 4 अक्तूबर 2009

उनसे दो बातें क्या करली उनका दम घुटने लगा


उनसे दो बातें क्या कर ली 

उनका तो दम ही घुटने लगा ।
पल 
भर में ही उन्हें लगा कि 
जैसे सब कुछ ही लुटने लगा ।

तारीफ तो इस लिए की जाती 

कि आत्मीयता बनी रहे आपस में
इसका मतलब यह नहीं कि 
जमाना 
उसके आगे तन-मन से झुकने लगा।

वो बहुत ही खूबसूरत हैं शायद 

किसी ने उनसे यह कह दिया
फ़िर क्या था फ़िर तो चाँद 
बदली में जा के छुपने लगा।

एक से एक पड़े 
हैं खूबसूरत 
चेहरे इस खूबसूरत जहाँ में
हाय जाने क्यों हर कोई शख्श 
बेताबी से उनकी ओर मुड़ने लगा।

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

जब जब मैंने सच बोला तो अपनों से हम दूर हुए


जब जब मैंने सच बोला अपनों से हम दूर हुए।
अपनों से जो सपने देखे सपने वो सब चूर हुए॥ 

जब भी जिसकी पड़ी जरूरत ले गए वो घर से
मुझको जरूरत पड़ी तो भोलेपन से मजबूर हुए।

साथ में बैठना उठना था जब थे हालात के मारे
फिरने लगे वो मुझसे ज्यों दौलत से भरपूर हुए।

एक दूजे के बिना दोनों कभी दूर नहीं रह पाए 
नज़रों से मुझे गिरा दिया जब से वो मशहूर हुए।

हम न करते तारीफ तो पता ही नहीं चल पाता
ज्यों ही पता लगा हम से दुनिया की वो हूर हुए। 


रविवार, 27 सितंबर 2009

फ़िल्म - ज़ंजीर के गाने की पैरोडी


फ़िल्म - ज़ंजीर के गाने की पैरोडी

बना के क्यों बिगाडा रे, .....

दीवाना क्यों बनाया रे, बनाया  रे दीवाना
ओ दीवाने ओ दीवाने -२
मुझको रिझा के,अपना बना के,
बनाया रे  दीवाना ओ दीवाने  ओ दीवाने

दिल में मेरे दिलवर बन के, दिल से लगाया मुझको
प्यार अगर ये  झूठा था तो, क्यों बहलाया दिल को
कसमें खिला के, ख़ुद भी खा के,
दीवाना क्यों बनाया रे, बनाया  रे दीवाना
ओ दीवाने  ओ दीवाने-2

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

विद्या देवी सरस्वती माता दे दो मुझको ज्ञान


विद्या देवी सरस्वती माता दे दो मुझको ज्ञान।
शाम सवेरे मैं पूजा करूँगा धरूँगा तेरा ध्यान॥

मूरख ज्ञानी बन जाता है
जाये जहाँ आदर पाता है
मुझको भी मिले सम्मान।
विद्या देवी सरस्वती माता दे दो मुझको ज्ञान।

अंधकार से मुझको उबारो
भवसागर से मुझको तारो
मेरा भी करो कल्याण।
विद्या देवी सरस्वती माता दे दो मुझको ज्ञान।

तेरी शरण में जो भी आया
जो भी माँगा वो ही पाया
दो मुझको भी वरदान।
विद्या देवी सरस्वती माता दे दो मुझको ज्ञान।

सोमवार, 21 सितंबर 2009

जिस दोहे ने मुझे कवि बनाया



जिस दोहे ने मुझे कवि बनाया । आज मैं यह दोहा आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह २४//१९७६ की बात है जब मैंने पहली बार कवि सम्मलेन देखा व सुना था । इस दोहे ने मेरा जीवन ही बदल दिया । भानु प्रताप बुंदेला जी ने यह दोहा सुनाया था।

एक पनिहारिन कुए पर पानी भरने जाती है और दोहा वहीं से शुरू होता है

पानी ऐंचत झुकी कुआ में,

झलके अंग अनोखे।
मानो जमुना जी में हों,

गुम्बद ताजमहल के ।

आप सब भी इस दोहे का आनंद लें.धन्यवाद !!