इस तरह तुम बसे मेरी आँखों में।
तेरी खुश्बू सी लगे मेरी सांसों में॥
खाने को खाया है मीठा तो बहुत
उतना कहाँ जितना तेरी बातों में।
दिन तो गुजर ही जाते जैसे-तैसे
पर खले जुदाई तेरी मेरी रातों में।
कुछ भी नहीं सुहाता है बगैर तेरे
लेकर देखूं तसवीर तेरी हाथों में।
लगा हुआ है पहरा चारों तरफ़ से
जीता मैं ज्यों जीभ मेरी दाँतों में।
तेरे जैसा नहीं होगा जादूगर कोई
दिल मेरा गया तेरी मुलाकातों में।
तेरे जैसा नहीं होगा जादूगर कोई
दिल मेरा गया तेरी मुलाकातों में।
लगा हुआ पहरा चारों तरफ़ से
जवाब देंहटाएंजी रही जैसे जीभ मेरी दाँतों में।
बहुत खूब कहा भाई आपने. जीने का ये अंदाज़ भी निराला है,
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
दिन तो गुजर जाते हैं जैसे तैसे
जवाब देंहटाएंपर जुदाई खले मुझे तेरी रातों में।
कुछ भी सुहाता नहीं है तेरे बगैर
देखूँ तस्वीर लेकर तेरी हाथों में ।
kyaa baat hai, bahut khoob !
लगा हुआ पहरा चारों तरफ़ से
जवाब देंहटाएंजी रही जैसे जीभ मेरी दाँतों में।
प्रेम नारायण शर्मा जी।
आपने हालात का अच्छा चित्रण किया है।
अगर आप गन्दी और अश्लील टिप्पणियाँ प्रकाशित करेंगे तो
आपके ब्लॉग पर आना सम्भव नही होगा।
मुझे बड़ा भाई मानते हो तो मेरी सलाह का भी ध्यान रखना!
शुभकामनाएँ!
bahut khoob premji, shayad dobara to post nahin ki hai , aisa lagta hai pahle padh chuka hun.
जवाब देंहटाएंयहां अभिव्यक्ति की स्पषटता प्रमुख है।
जवाब देंहटाएंबेहतर।
जवाब देंहटाएंआप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!
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