रविवार, 28 दिसंबर 2014
सोमवार, 6 अक्तूबर 2014
वरिष्ठ कवि महोदय की युक्ति
वरिष्ठ कवि महोदय की युक्ति
वरिष्ठ कवि वो कहलाते हैं जो किसी कवि सम्मलेन में जाते हैं और थोड़ी देर बाद ही बड़े विनम्र भाव से संचालक महोदय से निवेदन के साथ कहते हैं मुझे जल्दी अवसर देने की कृपा करें एक जरूरी काम है वार्ना मेरी इच्छी तो थी कि सभी कवियों को सुनकर ही जाता । आशा है आप सब हमें क्षमा कर देंगे। सचमुच ही हम सब उन्हें क्षमा कर देते हैं और वो अपनी कविता अधिक से अधिक समय सुनकर सुनाकर अपना प्रतीक चिन्ह व पारश्रमिक ले जाना नहीं भूलते हैं. धन्य हो श्रीमान!
जब मैंने जाते हुए कवि से एकांत में पूंछा तो बोले मैं एक वरिष्ठ कवि हूँ बहुत देर तक रुकना मेरे सम्मान के खिलाफ है इस लिए जा रहा हूँ। मैंने यहाँ तक का सफर ऐसे ही तय नहीं किया श्रेष्ठ कवि बनने के लिए वरिष्ठ कवियों से यही युक्ति सीखी है। जयहिंद , चलता हूँ क्षमा करें बंधुवर !
गुरुवार, 29 मई 2014
शनिवार, 17 मई 2014
मंगलवार, 8 जनवरी 2013
गुरुवार, 28 जून 2012
शुक्रवार, 22 जून 2012
रविवार, 10 अक्तूबर 2010
भरोसा कर देख लिया हर कोई झूठा है
भरोसा कर देख लिया हर कोई झूठा है।
भरोसे में लेकर मुझे हर कोई लूटा है॥
लोग कहते हैं कुछ मगर करते हैं कुछ
इसलिए हर किसी से हर कोई रूठा है।
देने की जगह सब लेने पर तुले हुए
इसी वजह आज रिश्ता हर कोई टूटा है।
अच्छाई की जगह पर बुराई कायम हो गयी
तभी तो अपनों से हर कोई छूटा है।
मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010
तेरी मेरी जोड़ी बड़ा खूब ही जमेगी
तेरी मेरी जोड़ी खूब ही जमेगी
मैं भी खुश रहूँगा तू भी रहेगी
जलती है दुनिया तो जलने दे
प्रीति परवान यह अपनी चढ़ेगी
मैं भी खुश रहूँगा तू भी रहेंगी
दुनिया से दूर नई दुनिया बसायेंगे
तन मन की मीठी ज्योति जलाएंगे
वही करूँगा तू जो भी कहेगी।
मैं भी खुश रहूँगा तू भी रहेगी
मरते-मरते प्रेमियों ने कहा है
प्रीति बिना जीना जीना क्या है
प्रीति मिशाल ये अपनी बनेगी
मैं भी खुश रहूँगा तू भी रहेगी
गुजरेंगे जब हम तुम जहाँ से
चर्चायें होगी सबकी जुबाँ पे
दाँतों तले ऊँगली उनकी दबेगी
मैं भी खुश रहूँगा तू भी रहेगी
एक दूसरे के हम होकर रहेंगे
एक दूसरे में हम खोकर रहेंगे
रोशन दोंनों की जिन्दगी रहेगी
मैं भी खुश रहूँगा तू भी रहेगी
शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010
मेरी मुहब्बत ने मुझपे क़यामत ही ढाई है
मेरी मुहब्बत ने मुझपे क़यामत ऐसी ढ़ाई है।
जहाँ भी जाऊँ मिले बस मेरी रुसबाई है॥
जहाँ भी जाऊँ मिले बस मेरी रुसबाई है॥
वो थे तो था साथ बहारों का मौसम
अब वो साथ नहीं साथ मेरी तन्हाई है।
पहले तो खुश किया फिर रुला दिया मुझे
अब क्या कहूँ खुदा यह तो तेरी खुदाई है।
पा भी न सकूँ छोड़ भी न सकूँ उसे
मुहब्बत भी तूने क्या खूब ही बनाई है।
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