मेरी मुहब्बत ने मुझपे क़यामत ऐसी ढ़ाई है।
जहाँ भी जाऊँ मिले बस मेरी रुसबाई है॥
जहाँ भी जाऊँ मिले बस मेरी रुसबाई है॥
वो थे तो था साथ बहारों का मौसम
अब वो साथ नहीं साथ मेरी तन्हाई है।
पहले तो खुश किया फिर रुला दिया मुझे
अब क्या कहूँ खुदा यह तो तेरी खुदाई है।
पा भी न सकूँ छोड़ भी न सकूँ उसे
मुहब्बत भी तूने क्या खूब ही बनाई है।
मेरी मुहब्बत ने मुझपे क़यामत ही ढाई है।
जवाब देंहटाएंजहाँ भी सुनता मेरी रुसबाई ही रुसबाई है।
वाह , सुन्दर पंक्तियाँ ।
बढ़िया है प्रेम जी ।
पा भी न सको मुहब्बत छोड़ भी न सको
जवाब देंहटाएंये मुहब्बत भी तू ने क्या खूब ही बनाई है।
हकीकत!
आशीष
पहले तो खुश किया फिर रुला दिया है तूने
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ खुदा ये तो बस तेरी ही खुदाई है।
ये खुदाई भी इत्ती गहरी है कि जो इसमे गिरा ता उम्र बहार नहीं आ पाता, बस बहार आने की कोशिश में ही जिंदगी गुज़र जाती है ........
चन्द्र मोहन गुप्त
पहले तो खुश किया फिर रुला दिया है तूने
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ खुदा ये तो बस तेरी ही खुदाई है।
कश्मकश का नाम है जिन्दगी
पा भी न सको मुहब्बत छोड़ भी न सको
जवाब देंहटाएंये मुहब्बत भी तू ने क्या खूब ही बनाई है...
इसी का नाम ही तो मुहब्बत है ... गले की हड्डी ...
भ्राताश्री,
जवाब देंहटाएं‘हिन्दयुग्म’के रास्ते से होता हुआ मैं कब अचानक आपके ब्लॉग पर आ आ टपका, पता ही नहीं चला! आपका Profile देखकर आपमें मेरी दिलचस्पी जागी। मैं भी फ़र्रुख़ाबाद के छिबरामऊ में ही जन्मा हूँ। छिबरामऊ अब तो कन्नौज में है। डी.एन. डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन करके कानपुर आ गया। अब सोनभद्र में अड्डा जमाए हूँ। शेष फिर कभी, फिलवक़्त जल्दी में हूँ... शुभ रात्रि!