बहुत कुछ दिया तुमने प्रभु
कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
जो भी दिया तूने दिया
मेरा नहीं सब कुछ तुम्हारा।
भवसागर में था मैं उलझा
तेरी शरण में आकर सुलझा
तेरी कृपा से पाया किनारा।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
तुझसे ही प्रभु शाम-सवेरे
जानूँ कितने रूप हैं तेरे
देखूँ जिधर उधर तेरा नज़ारा।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
अपना तुझको जिसने भी बनाया
उसका जीवन तुमने ही खिलाया
हो गये उसके जिसने पुकारा।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
भक्ति में अपनी रमाये रखना
कृपा की द्रष्टि बनाये रखना
तेरा ही बस मुझको सहारा।
कैसे करूँ मैं शुक्रिया तुम्हारा।
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....
जवाब देंहटाएंमुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
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प्रभु की शरण में ही सुकून मिलता है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी भावपूर्ण रचना प्रेम जी ।
बहुत कुछ दिया है, तुमने प्रभु
जवाब देंहटाएंकैसे करुँ मैं, शुक्रिया तुम्हारा।
जो कुछ भी है, पास में मेरे
वो है प्रभु , सब कुछ तुम्हारा ...
सुंदसर रचना है .... सुंदर प्रभु वंदन ....
भक्तिभाव अगाध है ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय ।
सही कहा है....सब कुछ उस प्रभु का ही तो है...हम तो बस यूँ ही मेरा-मेरा कहते रहते हैं !!!
जवाब देंहटाएंतुझसे ही प्रभु, शाम-सवेरे
जवाब देंहटाएंजानूँ न कितने, रूप हैं तेरे
देखूँ जिधर उधर, तेरा नज़ारा.....
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bahot sunder.
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