रविवार, 16 अगस्त 2009

कोई पी रहा दोस्तों में कोई पी रहा अकेले में

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कोई पी रहा दोस्तों में कोई पी रहा अकेले में
ढूँढ रहा हर कोई साथी दुनिया के इस मेले में। 
एक न एक दिन सकूं उसे मिल जाएगा ज़रूर 
पर सकूं उसे मिलता नहीं दुनियाँ के झमेले में॥  

किसी तरह आनंद न आये तो कोई क्या करे
हर किसी की जुबान पर यही सवाल रहता है। 
कहीं कोई हँसी न उड़ा दे उसके जज्बात की
यही सोचकर वो अक्सर चुपचाप सा रहता है॥ 

आजकल मुहब्बत दिलों से मिटती जा रही है
दुनियाँ अपने आप में ही सिमटती जा रही है।
किसी को भी किसी की परवाह नहीं जहाँ में
पता नहीं ये दुनियाँ कहाँ भटकती जा रही है॥ 

ग़मों से ही खुशियों की पहचान हुआ करती है
खुशियों से ही ग़मों की पहचान हुआ करती है।
बहुत कम ही लोग समझते पाते इस दुनिया में
जिन्दगी चार दिन की महमान हुआ करती है॥

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया गज़ल है बधाई स्वीकारें।

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  2. waah premji chaaron muktak umdaa hain
    rochak bhi hain saahityik bhi hain
    saral bhi hain
    aur goodh bhi hain
    badhai !

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  3. आजकल मुहब्बत दिलों से मिटती जा रही है
    दुनिया अपने आप में ही सिमटती जा रही है

    सच कहा है आपने........... dilon में dooriyaan आती जा रही हैं.........लाजवाब लिखते है आप..........

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  4. कोई पी रहा दोस्तों में कोई पी रहा अकेले में
    ढूँढ रहा हर कोई साथी दुनिया के इस मेले में।
    एक न एक दिन सकूं उसे जरूर मिल जाएगा
    पर उसे सकूं नहीं मिलता दुनिया के झमेले में।

    बहुत ही खुब ................दुनिया अंसुल्झी पहेली है ...........सुन्दर भाव वाली रचना

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  5. आजकल मुहब्बत दिलों से मिटती जा रही है
    दुनिया अपने आप में ही सिमटती जा रही है।
    वाह! प्रेम भाईसाहब बहुत अच्छा है. बडे सलीके से कहा है आपने.

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  6. आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!

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