गुरुवार, 6 अगस्त 2009

अपराध की दुनिया दुनिया दल दल


अपराध की दुनिया है दुनिया दल दल
फंस जाए जो वो पाए न निकल
सोचने बैठे तो वो सोचता ही रहे
फिर भी 
न सूझे कोई उसको हल। 

पता नहीं जाने कब क्या घट 
जाय 

मारने को निकले और ख़ुद मर जाय
मौत मंडलाये सिर पर हर एक पल।
अपराध की दुनिया है दुनिया दल दल

छुप छुप जीना भी है कोई जीना
ऐसे जीवन ने सुख चैन ही छीना
आज का भरोसा नहीं क्या होगा कल।
अपराध की दुनिया है दुनिया दल दल

पीछा न छोडे कर्मों का लेखा जोखा
काटता है वही वो जो भी यहाँ बोता
भोगना ही पड़ता अपने कर्मों का फल।
अपराध की दुनिया है दुनिया दल दल





5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने...

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  2. छुप छुप जीना भी कोई जीना है
    ऐसे जीवन ने सुख चैन छीना है
    बढिया ढंग प्रस्तुतिकरण का. सुन्दर

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  3. अपराध की दुनिया दुनिया दल दल
    फंस जाए जो भी वो पाए न निकल
    सोचने बैठे कभी तो सोचता ही रहे
    किसी तरह न सूझे कोई उसको हल।

    क्या खूब छन्द है।
    आपने तो आचार्य केशवदास की याद तरो-ताजा
    कर दी है।
    बधाई।

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