ज़रा- ज़रा सी बात पर अपने रूठने लगे।
इसी वजह से आजकल रिश्ते टूटने लगे।
कैसे निभें रिश्ते बताओ दूर तक भला
अपनत्व के सागर दिलों में सूखने लगे।
कैसे निकलें घर से माँ बहिन - बेटियाँ
गली - गली में गुंडे मवाली घूमने लगे।
बढ़ रहे अपराध दिनों दिन समाज में
गुनाह कर के लोग बेगुनाह छूटने लगे।
जल्दी से हर कोई बनना चाहता अमीर
जिसको मिलता मौका जहाँ लूटने लगे।
वाह प्रेमजी, सच, अन्दर की बात कह डाली आपने !!!
जवाब देंहटाएंसच के करीब ले जाती है रचना.
जवाब देंहटाएं{ Treasurer-T & S }
SACH KAHA HAI..... RISHTON KO NIBHAANE KE LIYE DIL BHI BADAA HONA CHAHIYE......
जवाब देंहटाएंकैसे निभें रिश्ते बताओ दूर तक भला
जवाब देंहटाएंअपनत्व के सागर दिलों में सूखने लगे।
आगे बढ़ने और पैसे कमाने के होड़ मे लोग रिश्ते निभाना तो सच मे भूल गये है.
बढ़िया कविता.
bahut hi sahi kaha hai apane.....badhaee
जवाब देंहटाएंsach ko khoobsoorat shabd de diye aapne.
जवाब देंहटाएंज़रा- ज़रा सी बात पर अपने रूठने लगे।
जवाब देंहटाएंइसी वजह से आजकल रिश्ते टूटने लगे।
bahut sahi kaha, aaj kal rishte rishte nahin chhui mui ka vriksh ho gaye hain. umda rachna.
badhaai yogya shabd.shilp aur kathan
जवाब देंहटाएंwaah
waah !
Wah bahut sahee.
जवाब देंहटाएंकैसे निभें रिश्ते बताओ दूर तक भला
जवाब देंहटाएंअपनत्व के सागर दिलों में सूखने लगे।
बहुत खूब प्रेम जी...आपकी रचनाएँ हमेशा प्रेरक होती हैं...
नीरज
आपने तो आज के हालात की जिंदा तस्वीर पेश कर दी, बधाई. हम कलमकारों का यही धर्म है कि समाज की सही स्थिति से लोगों को अवगत कराते रहें. यही कारण है कि इस दौर में शुद्ध प्रेम परक रचनाएँ मजाक लगती हैं.
जवाब देंहटाएंबढ़ रहे अपराध दिनोंदिन समाज में
जवाब देंहटाएंगुनाह करके लोग बेगुनाह छूटने लगे।
खूबसूरत छंद।
बधाई!
बढ़ रहे अपराध दिनोंदिन समाज में
जवाब देंहटाएंगुनाह करके लोग बेगुनाह छूटने लगे।
bahut sunder rachna hai...
आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!
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