मुझे चढ़ गयो प्यार का बुखार,
उतारो करो जल्दी बलमा
देखो अब और न करो बेकरार,
उतारो करो जल्दी बलमा।
हीर के राँझे को लाओ
लैला के मजनूँ को लाओ
जाओ जाओ जल्दी जाओ
अब न बिल्कुल देर लगाओ
देखो देर न करो सरकार,
उतारो करो जल्दी बलमा।
तड़प तड़प के मरि न जाऊं
ऐसे में कुछ करि न जाऊं
किसी तरह में चैन न पाऊँ
कहाँ तक मैं ख़ुदको तडपाऊँ
यूँ ही खड़े न रहो लाचार,
उतारो करो जल्दी बलमा।
तन-मन मेरा जलने लगा है
मति मेरी यह हरने लगा है
सोच-सोच कर डरने लगा है
अपने आप ही मरने लगा है
मेरा जीना ही हुआ है दुश्वार
उतारो करो जल्दी बलमा।
Bahut Khub..
जवाब देंहटाएंNatkhat geet..par bahut sundar likha hai aapne..
badhayi!!!
एक सुन्दर गीत.........बधाई
जवाब देंहटाएंbadhia hai ji, utaar hi daalo...... pyaar ka bukhar.
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई भइया।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिख रहे हो।
इस बुखार की दवा तो जल्दी ही होनी चाहिए
जवाब देंहटाएंवाह !
उम्दा रचना !
ज़ोरदार गीत है
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तख़लीक़-ए-नज़र
वाह प्रेम जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 'प्यार का बुखार'
इतनी भी जल्दी क्या है इस बुखार को उतारने की!
आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!
जवाब देंहटाएंJORDAAR GET HAI PREM JI ..... PYAAR MEIN TO SAB KUCH HOT HAI . BUKHAAR KI KYA BAAT .......
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