देख के तुझको मैं बेजुबान रह गया।
उठा मगर ठहर के तूफ़ान रह गया॥
तुम क्या गए मानो प्राण निकल गए
खाली तन का यह मकान रह गया॥
ऐसे रूठे मुझको मुड के भी न देखे
कहें कि अब क्या दरमियाँ रह गया॥
वो चला गया जिसपे गरूर था मुझे
नीचे जमीं ऊपर असमान रह गया॥
उनकी हर बात मुझे सच लगती थी
सी वही सच अब झूठा बयान रह गया॥