मतदाताओ
किसी का न भय करो,अपना नेता तय करो।
तभी उसकी जय करो,तभी उसकी जय करो॥
आओ मिल कर चुने हम सब नेता जो हैं भले।
ताकि जीवन और देश जिन से ढंग खूब चले।
आँख बंद कर आख़िर कब तक सोते यूँ रहोगे।
अपनी किस्मत पे भला कब तक यूँ रोते रहोगे॥
सदा ही झूठे वादों द्वारा हम लपेटे हैं
अक्ल से अपने आप में हम समेटे गए हैं
सबकी सुनके कभी नीति भी अपनी बनाओ
दिखावा छोड़ वोटर अपनी भी अक्ल लगाओ
डरने की तो प्यारे कहीं कोई बात नहीं है
जीने मरने में होता कभी कोई साथ नहीं है
जैसा हो माहौल तुम्हारा वैसे ही ढल जाओ
जो सब के ही हित में हो वैसे चल जाओ
सबका हित जो चाहे सचमुच नेता है वही
हित कहे अहित करे वो अपना नेता है नहीं
जब तक न बदलोगे प्यारे कुछ भी न बदलेगा
सिर्फ़ जीवन का दुःख दर्द आँखों से छलकेगा
बहुत सुंदर लिखा है ... बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रेम भाई!
जवाब देंहटाएंनेता तो चुन ही रहे हो। चारे का भी प्रबन्ध कर लेना।
आकल के नेताओं को वोट के साथ चारा भी खिलाना पड़ता है।
बधाई। अच्छी रचना है।
किसी का भी न भय करो
जवाब देंहटाएंपहले अपना नेता तय करो
तब ही उसकी तुम जय करो
बहुत सुन्दर रचना है बधाई..
बेहतरीन एवं सटीक रचना, प्रेम भाई.
जवाब देंहटाएंप्रेम जी,
जवाब देंहटाएंसीधी सीधी बात जो अपने सादे लहजे में बहुत असर छोड़ती है. कुछ दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया, क्षमा चाहता हूँ.
मुकेश कुमार तिवारी