प्यार नहीं है तो जताता क्यों है।
सरेआम फिर मुझको बनाता क्यों है॥
माना कि जमाने में बड़ा नाम है तेरा
बता मेरे दिल को जलाता क्यों है।
जुबान दी है तो उसको निभाओ भी
जुबान से सभी को भरमाता क्यों है।
पीते वक्त जरा होश तो रखा कर
संभाल खुदको फिर लड़खडाता क्यों है।
अक्ल को अपने पास रख अच्छा होगा
बता गैरों को इतना तू समझाता क्यों है।
अपनी नज़र में सभी चतुर हुआ करते
खुदको सबसे बड़ा चतुर बताता क्यों है।
रचना बहुत अच्छी लगी,बधाई।
जवाब देंहटाएंमैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा
लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा
लगेगा और अपने विचार जरूर दें। प्लीज.....
हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
झूठ के प्यार को, दुनिया को जताता क्यों है?
जवाब देंहटाएंसब्ज गुलशन में, बहारों को जलाता क्यों है?
शोख कलियों को, जरूरत नही अब तेरी,
बे-शरम बन के, नजारों को दिखाता कयों है?
sundar rachna..........sabko ek sabak sikhati huyi.
जवाब देंहटाएंअपनी नज़र में सभी चतुर होते
जवाब देंहटाएंखुदको बड़ा चतुर बताता क्यों है।
-बहुत सही बात कही!! आनन्द आया पढ़कर.