जबसे तुझसे आँख मेरी लड़ गई रे
बिना पिए ही जैसे मुझको चढ़ गई रे
छुप के तुझको देखने लगा हूँ
आँखें मैंअपनी सेकने लगा हूँ
मेरे दिल की अंगूठी में तू जड़ गई रे।
रात भर मैं जगने लगा हूँ
ठंडी आहें भरने लगा हूँ
निंदिया जैसे मेरी आंखों से उड़ गई।
कुछ भी मुझको भाता नहीं है
समझ में कुछ भी आता नहीं है
तेरी चाहत में हालत बिगड़ गई रे।
सुन्दर गीत है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रेम भाई. आशा है अब तबीयत दुरुस्त होगी. विमोचन में आप तबीयत की नासाजी से न आ सके, बहुत अखरा.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबचाया तेरी नजरों से मैं खुद को ऐ मेरे साथी।
मेरे चेहरे को कैसे तुम छुपाकर पढ़ गई रे।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
बधाई।
bahut badhiya.....aise tabiyat nasaz na kiya kijiye.
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