सोमवार, 21 सितंबर 2009

जिस दोहे ने मुझे कवि बनाया



जिस दोहे ने मुझे कवि बनाया । आज मैं यह दोहा आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह २४//१९७६ की बात है जब मैंने पहली बार कवि सम्मलेन देखा व सुना था । इस दोहे ने मेरा जीवन ही बदल दिया । भानु प्रताप बुंदेला जी ने यह दोहा सुनाया था।

एक पनिहारिन कुए पर पानी भरने जाती है और दोहा वहीं से शुरू होता है

पानी ऐंचत झुकी कुआ में,

झलके अंग अनोखे।
मानो जमुना जी में हों,

गुम्बद ताजमहल के ।

आप सब भी इस दोहे का आनंद लें.धन्यवाद !!