शनिवार, 12 सितंबर 2009

दोस्त दिल की मजबूरी मेरी भूल बन कर रह गयी


दोस्त दिल की मजबूरी मेरी भूल बन के रह गयी। 
देखते ही देखते सपनों की दुनियाँ धम से ढह गयी॥ 

उनकी सोच थी कुछ और मेरी सोच थी कुछ और
सोच से सोच टकरायी दोनों की जिन्दगी बह गयी।

बिना फैसलों के दुनियाँ में कुछ हासिल नहीं होता
यह मेरी किस्मत मुझसे रुला रुला करके कह गयी।

अक्सर दिल बहला लेता हूँ उसके हसीं ख्यालों से
मैं नहीं सह पाया उसकी जुदाई मगर वो सह गयी।

11 टिप्‍पणियां:

  1. judaayi ke ahsaas ko bakhubibayan kiya hai.............kuch to majbooriyan rahi hongi,yun hi koi bewafa nhi hota.

    read my new blog--------http://ekprayas-vandana.blogspot.com

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  2. बेहतरीन लहजा रहा प्रेम भाई इस बार। बहुत अच्छी बात कही "पर वो सह गई”।

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  3. प्रेम जी,

    आपकी विशेषता है कि सीधे-सादे शब्दों में बड़ी बातें भी कह लेते हैं।

    बहुत अच्छा लगा आपका यह अश’आर :-

    बिना फैसलों के कुछ भी हासिल नहीं होता
    मेरी किस्मत मुझसे रुला करके कह गयी।

    सच है कि बिना निर्णय लिये हम सिर्फ अपनी किस्मत को ही कोसते रह जाते हैं और कुछ नही करते।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  4. अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
    मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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  5. आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!

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