पा कर मन का मोहना कैसे हो खुदको रोकना
कौन सोच में डूबे तुम प्यार में खुदको झोकना
जब से देखा है उसको होश नहीं है अब मुझको
सच कहूँ ऐसे में मुझे भाये न किसी का टोकना।
ख़ुद में ही मैं लगी डूबने ख़ुदको ही मैं लगी ढूँढने
डूबी गयी गहरी प्यार में भाये न किसी से बोलना।
उसकी शरण में जब से गई उसकी हो के रह गई
भाने लगा अब तो मन को साथ में उसके डोलना।
prabhu prem ko samarpit rachna
जवाब देंहटाएं"पा कर मन का मोहन
जवाब देंहटाएंकैसे हो खुदको रोकना
कौन सोच में डूबा रे मन
प्यार में खुदको झोकना।"
बढ़िया रचना है जी।
बधाई!
बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति ।
जवाब देंहटाएंWaah..ati sundar.
जवाब देंहटाएंbadhayi..
waah bahut hi khub .......man ka mohana kuchh aisaa hi hota hai...
जवाब देंहटाएंumda rachna. badhaai.
जवाब देंहटाएंकौन सोच में डूबा रे मन
जवाब देंहटाएंप्यार में खुदको झोकना।
सुन्दर अभिव्यक्ति
सपर्पण का चरम
प्रेम भाव से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंउसकी शरण जब से गई हूँ
जवाब देंहटाएंउसी की हो के मैं रह गई हूँ
भाने लगा अब तो मन को
साथ लेकर उसको डोलना।
सुन्दर अभिवयक्ति ....।
बहुत सुंदर भाव और अब्भिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना दिल को छू गई!
जवाब देंहटाएंआप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!
जवाब देंहटाएंउसकी शरण जब से गई हूँ
जवाब देंहटाएंउसी की हो के मैं रह गई हूँ
भाने लगा अब तो मन को
साथ लेकर उसको डोलना।
wah prem
wah adhbhut prem