मंगलवार, 24 मार्च 2009

लागा चुनरी में दाग के गीत के आधार पर गीत



प्यारा सजनी का प्यार भुलाऊं कैसे
भुलाऊं कैसे उसे घर लाऊं कैसे
प्यारा सजनी का प्यार ---

रूठी जब से मोरी सजनियाँ
प्यार से प्यारी मोरी सजनियाँ
जाके ससुराल में उसको मनाऊं कैसे
उसे घर लाऊं कैसे
प्यारा सजनी का प्यार ---

चली गई वो बिना बतलाये
तन तड़पे  मन मोरा घबराए
जाके ससुराल में उसको मनाऊं कैसे
उसे घर लाऊं कैसे
प्यारा सजनी का प्यार ---

कभी कभी मेरे मन में उठते
उलटे सीधे सवाल
बिन सजनी के सचमुच ही
ये जीवन है जंजाल
जाके ससुराल में उसको मनाऊं कैसे
उसे घर लाऊं कैसे
प्यारा सजनी का प्यार ---









7 टिप्‍पणियां:

  1. अपने मन और दिल की उधेड़बुन को बहुत अच्छे तरीके से लिखा है आपने

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. दिल का दर्द उमड़ कर,

    सारा कविता में भर आया।

    शहनाई के सुर में मन की,

    पीड़ा का सन्देश समाया।।

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  3. मैंने उसको किया कभी मना ही नहीं।
    मगर उसने मुझे कभी छुआ ही नहीं।

    बहोत खूब .....!!

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  4. घर जाऊं कैसे? बहुत सुंदर रचना.

    रामराम.

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