आज कल तू मुझसे बोलता क्यों नहीं।
राज ए दिल मुझसे खोलता क्यों नहीं॥
दिन रात सोचता रहता हूँ तेरे बारे में
मेरे बारे में आख़िर सोचता क्यों नहीं।
नीरस सी लगने लगी है जिंदगी मेरी
पास आकर जीवन रस घोलता क्यों नहीं।
परेशां क्यों हो उलझ कर अपने आप में
दिन रात तेरे बारे में सोचता क्यों नहीं।
गुस्सा थूक कर आ जाओ करीब दिलवर
दिल मिला कर साथ डोलता क्यों नहीं।
वाह बहुत नेक ख्याल लिखा है
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब लिखा है।
जवाब देंहटाएंवाह् वाह प्रेम साहब क्या कहना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है ...
जवाब देंहटाएंbade hi sadharan lafzon mein aapne bahut badi baat keh di... badhai ho aapko
जवाब देंहटाएंतुमने मन से बातें की है,
जवाब देंहटाएंमन ही तो दिलवर है,
मन में बस जाओ अपने,
ये सुन्दर एक नगर है।