मैंने उसे किया कभी मना ही नहीं।
मगर उसने मुझे कभी छुआ ही नहीं॥
उसका अंदाज ही जहाँ से निराला लगे
वैसा कोई मुझे कभी लगा ही नहीं।
बना रहता वो हर पल मेंरे सामने
फ़िर भी मन कभी भरा ही नहीं।
समाया हुआ है मुझमें उसका ही नशा
उसके नशा जैसा कोई नशा ही नहीं।
मुझ में समाया हुआ है उसका नशा
जवाब देंहटाएंउस के नशा जैसा कोई नशा ही नहीं।
क्या बात है !
gahre ahsaas liye har sher.
जवाब देंहटाएंप्रेम फर्रुखाबादी पर अब,
जवाब देंहटाएंनशा चढ़ा है ऐसा।
कर देगा बरबाद नशे का,
रोग लगाया कैसा।
आपका लिखा देखा बहुत खूबसूरत लिखते हैं आप
जवाब देंहटाएंमुझ में समाया हुआ है उसका नशा
उस के नशा जैसा कोई नशा ही नहीं।
बहुत खूब
सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut achche
जवाब देंहटाएंvenus kesari
बहुत बेहतर प्रेम भाई! क्या ही उम्दा शेर कह गए आप। मुआफ़ करें जनाब आप तक बहुत देर से पहुँचने के लिए। आज तो आपकी पिछली भी पोस्टें पढ़ीं। मज़ा आ गया जी। बहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंउसका अंदाज जहाँ से निराला लगे
उस जैसा कोई मुझको लगा ही नहीं
वाह वाह!
बहुत प्रभावशाली रचना
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