शनिवार, 28 मार्च 2009

मैंने उसको किया कभी मना ही नहीं


मैंने उसे किया कभी मना ही नहीं। 
          मगर उसने मुझे कभी छुआ ही नहीं॥ 

उसका अंदाज ही जहाँ से निराला लगे
             वैसा कोई मुझे कभी लगा ही नहीं।

बना रहता वो हर पल मेंरे सामने 
                 फ़िर भी मन कभी भरा ही नहीं।

समाया हुआ है मुझमें उसका ही नशा
           उसके नशा जैसा कोई नशा ही नहीं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. मुझ में समाया हुआ है उसका नशा
    उस के नशा जैसा कोई नशा ही नहीं।

    क्या बात है !

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  2. प्रेम फर्रुखाबादी पर अब,

    नशा चढ़ा है ऐसा।

    कर देगा बरबाद नशे का,

    रोग लगाया कैसा।

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  3. आपका लिखा देखा बहुत खूबसूरत लिखते हैं आप

    मुझ में समाया हुआ है उसका नशा
    उस के नशा जैसा कोई नशा ही नहीं।
    बहुत खूब

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  4. बहुत बेहतर प्रेम भाई! क्या ही उम्दा शेर कह गए आप। मुआफ़ करें जनाब आप तक बहुत देर से पहुँचने के लिए। आज तो आपकी पिछली भी पोस्टें पढ़ीं। मज़ा आ गया जी। बहुत ख़ूब।
    उसका अंदाज जहाँ से निराला लगे
    उस जैसा कोई मुझको लगा ही नहीं
    वाह वाह!

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