सोमवार, 6 जुलाई 2009

मुस्कराते हुए लोग भी अन्दर से हुए क्रूर हैं


मुस्कराते हुए लोग भी अन्दर से हुए क्रूर हैं।
       दोहरी जिन्दगी जीने के लिए हुए मजबूर हैं॥

कहना कुछ करना कुछ आदत सी पड़ गयी
      इन्सान के आज  कितने बदल गए दस्तूर हैं॥

जुल्म पर जुल्म  बढते जा रहे हैं दिनों दिन
       मगर सज़ा वही पा रहे जो गरीब बेक़सूर है॥

मस्ती में  जी रहे हैं वही  मनमानी जिंदगी
        जिनके दौलत से भरे हुए खजाने भरपूर हैं॥

कोई किसी की परवाह ही नहीं करना चाहे 
       इंसानियत से लोग आज जा रहे बड़ी दूर हैं॥

शासन प्रशासन सभी तो हैं जनता के लिए
        इसके बावजूद भी सब लोग हुए चूर चूर हैं॥