अपने आपसे अपना मुख क्यों मोड़ने लगे हो।
दुनिया का दुःख जीवन में क्यों भोगने लगे हो॥
कम से कम जो बोले लगता वही है प्यारा
यह जान कर भी ज्यादा क्यों बोलने लगे हो॥
दुनिया का दुःख जीवन में क्यों भोगने लगे हो॥
कम से कम जो बोले लगता वही है प्यारा
यह जान कर भी ज्यादा क्यों बोलने लगे हो॥
देखो रिश्तों को कभी भी गहराई से मत देखिए
गहराई से देख के रिश्तों को क्यों तोड़ने लगे हो॥
ख़ुद ही इन्सां गिरता है और ख़ुद ही उठता है
फ़िर दोष दूसरों पर क्यों भाई थोपने लगे हो॥
अपने ही हाथों में होता अपना भाग्य बनाना
कहो फिर अपने आप को क्यों कोसने लगे हो॥
राज की बातें राज बना के रखना सीखो यारो
गैरों से अपनी बातों को क्यों खोलने लगे हो॥
नए मीत बने तो उनको भी अपने गले लगाओ
नए की खातिर पुराने को क्यों छोड़ने लगे हो॥
अगर चाहने पर भी कोई तुम को नहीं चाहे
भला ऐसे लोगों से खुदको क्यों जोड़ने लगे हो॥
सोच समझ के ही हरदम अपना विवेक लगाओ
बिन सोचे समझे ही ख़ुदको क्यों झोंकने लगे हो॥
रच्छी सीख देती सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना, अपने हर कदम को सोच समझ के उठाने की सलाह, बेहतरीन ।
जवाब देंहटाएंख़ुद ही इन्सान गिरता और ख़ुद ही उठता है
जवाब देंहटाएंफ़िर दोष दूसरों पर भैया क्यों थोपने लगे हो
अच्छे भाव से सजी कविता, nek salaah det हैं apki kavitayen
आज के समाज पर बहुत अच्छी टिप्पणी,
जवाब देंहटाएंअपनी बात ही आज लोगो के समझ मे आती है,
दूसरे की अच्छी बात भी अब कहाँ भाती है,
कौन सोचता समझता है,आज बोलने से पहले,
यहीं बात आज सारी रिश्तों को रूलाती है.
बहुत ही उम्दा और सार्थक रचना है
जवाब देंहटाएं---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
bahut sundar baat kahi hai aapane isame ek ek sachchi baat kahi hai .............bahut sundar
जवाब देंहटाएंख़ुद ही इन्सान गिरता और ख़ुद ही उठता है
जवाब देंहटाएंफ़िर दोष दूसरों पर भैया क्यों थोपने लगे हो।
सच्ची बात....बहुत प्यारी रचना है आपकी प्रेम साहेब...जिंदगी के अलग अलग रंग बिखेरती और सिखाती हुई...
नीरज
नए मीत बने तो अपने गले लगाओ उन को
जवाब देंहटाएंनए की खातिर पुरानो को क्यों छोड़ने लगे हो।
प्रेम भाई।
कुछ तो मौसम का मजा लो भइया,
आप चादर के बदले में रजाई क्यों ओढ़ने लगे हो।
सार्थक नज्म के लिए बधाई।
प्रेम जी,
जवाब देंहटाएंजीवन के सार से गर्भित गज़ल। जीवन को सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा देती हुई भली लगी और आपका रचनाधर्म भी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
रिश्तों को कभी भी गहराई से मत देखिये
जवाब देंहटाएंगहराई से देखके रिश्तों को क्यों तोड़ने लगे हो।
अपने ही हाथों में होता अपना भाग्य बनना
फ़िर आप अपने आपको क्यों कोसने लगे हो।
बेहतरीन रचना !
जीवन को सही और गहरे मायने देती पोस्ट
मेरी शुभकामनाएं !
आज की आवाज
चंद पंक्तियों में ही बहुत कुछ सिखा गए. प्रयास सार्थक रहा.
जवाब देंहटाएंबधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
नेक सलाह जीवन की मुस्कान है. अच्छी ग़ज़ल के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएं- Hindi Poetry - यादों का इंद्रजाल
Kam se kam bole .......... wah kya baat hai
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder lage aapke ye khyaal
बहुत ही उम्दा रचना लिखा है आपने!
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