परदेश से जब आयेंगे मेरे साजना
रूठ जाऊंगी करूँगी उनसे बात ना
जो भी कहो,कहूँगी,दूर से ही कहो
रखने दूँगी बदन पर उन्हें हाथ ना॥
पूछूँगी क्यों इतना तरसाया मुझे
काहे पागल सजना बनाया मुझे
तुमने तो मुझको भुला ही दिया
काहे सताया इतना रुलाया मुझे
आदतें ये तुम्हारी आयी रास ना॥
हाय तुम क्या जानो कैसे रही हूँ
जीवित भी हूँ कि या मर गयी हूँ
तुम बड़े बेरहम हो बेदर्दी पिया
बस मैं ही यह जानूँ जैसे रही हूँ
लगता आयी तुम्हें मेरी याद ना॥
bhai yaad aati toh hogi unko magar ve bataate na honge
जवाब देंहटाएंachhi rachna !
badhaai !
satana to mahabuba ka hak banataa hai our aap mana dena ........sundar
जवाब देंहटाएंachhee chhedkhaanee hai...
जवाब देंहटाएंsundar bhav hai kavita ke.
जवाब देंहटाएंरूठने मनाने के अद्भुत भावः समेटे हुए है आपकी रचना...अति सुन्दर...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह क्या अंदाज़ है रूठे सजना को मनाने का............. लाजवाब लिखा है
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत है प्रेम भाई।
जवाब देंहटाएंबरसात में बहुत मज़ा देगा।
दुआ करो कि बारिश जल्दी से
आ जाये।
आपने इतने सुन्दर ढंग से गीत लिखी है कि पढ़कर भी सुनने का सा भान हुआ....बहुत बहुत सुन्दर वाह !!!
जवाब देंहटाएंभई, ये भी खूब रहा!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंsajni ke charitra men doobkar behatareen likha hai.
जवाब देंहटाएंJab aise,aise diggaj, tippanee kar gaye, hame aur likhnaa naa aana!
जवाब देंहटाएंManzoor, hai,un sabhheka kahanaa...!
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