नफ़रत करने की तो वो सारी हदें ही तोड़ दिए।
अपना रुख मोड़ के मेरा जीवन ही मोड़ दिए॥
भूल कर भी कोई किसी का इतना बुरा न चाहे
अपनों की खातिर अपनी आँख ही फोड़ लिए॥
ऐसे लोग जहाँ कहीं भी देखे मुझे समझ न आये
बड़े प्यार से मैंने उनसे अपने हाथ ही जोड़ लिए॥
सभी अपने मन के मिलें ऐसा हो ही नहीं सकता
मन के तो मैंने अपनाए बे-मन के वहीं छोड़ दिए॥
"मन के तो अपनाए बे-मन के मैंने छोड़ दिए।"
जवाब देंहटाएंभाव भरी कविता के लिए बधाई।
man ke to apnaya be-man ke chod diye
जवाब देंहटाएंbahut badhiya likha .........bas beman ke bhi chodna itna aasan hota nhi hai
सभी अपने मन के मिलें ऐसा हो नहीं सकता
जवाब देंहटाएंमन के तो अपनाए बे-मन के मैंने छोड़ दिए।
वाह...सही कहा प्रेम साहेब...बहुत अच्छी रचना...
नीरज
bhavnaaon ki sunder abhivyakti.
जवाब देंहटाएंसभी अपने मन के मिलें ऐसा हो नहीं सकता
जवाब देंहटाएंमन के तो अपनाए बे-मन के मैंने छोड़ दिए
सच लिखा है..जीवन की हकीकत
गर जल्दी जाना हो तुमको यह दुनिया छोड़कर
जवाब देंहटाएंसुबह-शाम जब चाहे सिगरट का कस लीजिये।
बहुत सह्जता सरलता से चेतावनी दे दी प्रेम भाई बहुत खूब सूरत अन्दाजे बयां है आपका
श्याम सखा
bahut sundar boss.
जवाब देंहटाएंis kavita ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya .. behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html