हित दिखा कर भी लोग अहित कर देते हैं।
अनादर भी कभी आदर सहित कर देते हैं॥
दुश्मनों के रूप कौन जान पाया आज तक
जिस रूप में भी आते व्यथित कर देते हैं।
चरित्रवान कोई लाख बनना चाहे दुनिया में
ऐसे भी लोग हैं जो आकर पतित कर देते हैं।
कितना भी सोच समझ कर फैसला कर लो
फ़िर भी राय लो तो लोग भ्रमित कर देते हैं।
क्या करें ऐसा करना लोगों का स्वभाव बन चुका है।
जवाब देंहटाएंहित दिखाकर भी लोग अहित कर देते हैं।
जवाब देंहटाएंअनादर भी कभी आदर सहित कर देते हैं।
दुश्मनों के रूप कौन जान पाया है आज तक
जिस रूप में भी आते व्यथित कर देते हैं।
चरित्रवान कोई लाख बनाना चाहे दुनिया में
ऐसे भी लोग हैं जो आ के पतित कर देते हैं।
कितना भी सोच समझ कोई फैसला कर ले
फ़िर भी राय लो तो लोग भ्रमित कर देते हैं।
बहुत सुंदर रचना ..... पर बहुत सारे शब्द टूटे हुए है .... जिससे पढने में दिक्कत आ रही है ... इसलिए मैने कापी कर टिप्पणी के जगह पर पेस्ट कर दी है ... ताकि अन्य लोग भी पढ पाएं।
दुश्मनों के रूप कौन जान पाया है आज तक
जवाब देंहटाएंजिस रूप में भी आते व्यथित कर देते हैं।
" sach khaa....dushman ya dost me frk krna bhut mushkil hai aajkal.....stya ko ujakr krti aapki ye archna.."
regards
संगीता पुरी ji
जवाब देंहटाएंaapka bahut bahut shukriya.
aap sabhi ke comments milte hai to dil ki khushi ka thikaana nahin rahta hai. aap ka apnatv hi mere liye pyaar aur aashirbaad ka kaam karta hai. Dhanybaad sweekaren.
जवाब देंहटाएंदुश्मनों के रूप कौन जान पाया है आज तक
जवाब देंहटाएंजिस रूप में भी आते व्यथित कर देते हैं.....
dost ke rup me hi dushman milte hain hmesha...pr aap ki kavita mere computer pe bilkul nazar nahi aayi Sangeeta ji shukriya jinhone ye kavita padhwa di...!!
ऐसे लोगों से दूर रहना और ' एकला चलो ' ही ज्यादा अच्छा.
जवाब देंहटाएं