शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

कोई अपना नहीं तो खुद अपने बनो


जब दिल से बात करो तो 
लोग दिमाग से सुनते हैं। 
जब दिमाग से बात करो तो 
लोग दिल से सुनते हैं। 
किसी से अपना स्वर मिलाओ तो
किसी से स्वर नहीं मिलते हैं ।  
किसी को अपना भी बनाओ तो 
वो अपने नहीं बनते हैं।
अगर बन भी गए तो आगे 
चल कर मुसीबत बनते है। 


यह दुनिया एक तलाश घर हैं। जब तक तलाश पूरी न हो जाये तलाशते रहो । यह तलाश ही जिन्दगी है। कभी कभी इस तलाश में आदमी जीत भी जाता है मगर हारता जादा है। जीत के अपने अपने तरीके हैं किसी का तरीका किसी दूसरे को जमता नहीं। एक अजीब सी उलझन में आदमी न चाहते हुए उलझ सा जाता है । कोई भी इस जिन्दगी में इस मनोदशा से अछूता नहीं है। जिन्दगी जीने का कोई एक पैमाना नहीं है। शायद इसी का नाम जिन्दगी है। 


जहाँ तक मैं समझता हूँ। इस दुनिया में हजारों नहीं लाखों नहीं बल्कि अनगिनत स्वभाव के लोग है। कभी कभी अपने मन के लोग सारी उम्र नहीं मिलते। समझ में ही नहीं आता कहाँ से शुरू करुँ कहाँ ख़त्म करुँ। कभी कभी सारी दुनिया को समझने के चक्कर में हम इतने उलझ जाते हैं कि ये दुनिया ही बेगानी लगने लगती है। आदमी कभी थक जाता है तो कभी थका दिया जाता है। 


एक कहावत से मैं काफी प्रभावित हूँ। " कि जिन्दगी में खुश रहना बहुत सरल है पर सरल रहना बहुत कठिन है "। शायद जिन्दगी का रहस्य इसी कहावत में छिपा नज़र आता है। जिन्दगी समझने से कभी समझ में नहीं आती क्योकि हम ज्ञान के समुन्दर में इतने उलझ जाते हैं कि जिन्दगी से काफी दूर चले जाते है।अंत में यही दूरी हमारी निराशा का कारन बन जाती है। फिर भी इस कारण को हम समझ के समझना नहीं चाहते हैं । शायद हमारी यही जिद हमारे हर दुःख का कारण बन जाती है।




4 टिप्‍पणियां:

  1. आपका लेख हमे बहुत पसंद आया,सही में जब तक कोई अपने विचार का न मिले खुद को अपना समझन ही बेहतर है .......

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  2. स्वागत है मेरे भाई///

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    :)

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