वैलेंटाइन डे
युवक - युवती
कोई हमें न रोको हम वैलेंटाइन डे मना रहे हैं।
जिन्दगी ऐसे भी जी जाती सबको बता रहे हैं॥
सभ्यता के पैरोकार
आप सब खाक वैलेंटाइन डे मना रहे है।
शादी के बाद की चोंच पहले लड़ा रहे है॥
युवक - युवती
कुछ नया करके ही जीवन आगे बढ़ता है।
घिसा - पिटा जीने को दिल नहीं करता है॥
सभ्यता के पैरोकार
क्यों सभ्यता को मिटटी में मिला रहे हो।
बुनियादों की चूरें सरे आम हिला रहे हो॥
युवक -युवती
एक बार ही मिलती है जीवन में जवानी।
वो भी क्या जवानी न हो जिसमें रवानी॥
सभ्यता के पैरोकार
जवानी तो हम पर भी कभी आई थी।
मगर ऎसी हरकत न कभी दिखायी थी॥
युवक -युवती
आपकी जलन को हम समझ पा रहे हैं।
देख कर हमें ख़ुदको नहीं रोक पा रहे है॥
सभ्यता के परोकार
मान-मर्यादाओं की खिल्ली उड़ा रहे हो।
हरकतों से पशु-पक्षियों को हरा रहे हो॥
युवक -युवती
लाइफ को हम मिल कर इंजॉय करेंगे
जीवन टेंशन को मिल कर बाय करेंगे।
किसी का दिल दुखाना मकसद नहीं है
हद में रहते हैं कभी होते बेहद नहीं है॥
सभ्यता के पैरोकार
परदे का जीवन यह परदे में ही रहने दो
अपने एन्जॉयमेंट को हद में ही बहने दो।
किसी एन्जॉयमेंट के हम ख़िलाफ़ नहीं हैं
हदें तो मंजूर हैं मगर बेहदें माफ़ नहीं हैं॥
प्यार किसी ख़ास दिन का मोहताज़ नही होता .....प्यार में फूहड़ता भी नही होती ....
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
प्रेम जी,
जवाब देंहटाएंआपसे एक लंबे समय बाद मुखातिब हो रहा हूँ. क्षमा चाहता हूँ, बीमार था. अब ठीक है और अपने काम और ब्लॉग पर लौट आया हूँ. बीच में शायद आपके ब्लॉग में कोई तकनीकि त्रुटी रही होगी मैनें कोशिश की थी.
अब नियमित संपर्क बना रहेगा. यदि संभव हो तो अपना कोई कान्टेक्ट नम्बर दे देंवे. मुझसे ०९४२५०-६५११५ पर संपर्क किया जा सकता है.
मुकेश कुमार तिवारी
'हदें तो मंजूर हैं मगर बेहदें माफ़ नहीं हैं।'
जवाब देंहटाएं- सही कहा.
आप की कविता में सच्चाई है.सामयिक भी है.
जवाब देंहटाएं---
आप मेरे ब्लॉग पर आए.अच्छा लगा.
शुक्रिया.