रविवार, 18 अक्तूबर 2009

ओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा


ओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा
तेरी हरकतों से हो न,जीना मुश्किल मेरा

दिल मेरे, सुन जरा, मत हो,यूँ फ़िदा।

जिसको भी तू देखे,हो जाए क्यों दीवाना
हाय,तेरी खातिर मुझको,पड़ता घबराना
मान जा मेरा कहना,सच कहता हूँ वरना
कहीं तेरी वजह 
न हो जाए कोई लफडा। 
दिल मेरे, सुन जरा, मत हो यूँ फ़िदा।

समझा समझा के मैं,तुझको थक गया हूँ
तेरी कसम मैं तो,बिल्कुल ही पक गया हूँ
क्या हैं तेरे इरादे,तू मुझको यह बतला दे
बहुत सता लिया तूने,अब और न सता।
 

दिल मेरे, सुन जरा, मत हो,यूँ फ़िदा












11 टिप्‍पणियां:

  1. समझा समझा कर मैं, तुझको थक गया हूँ
    तेरी कसम मैं तो, बिल्कुल ही पक गया हूँ
    क्या हैं तेरे इरादे
    मुझको ये बतादे
    बहुत सता लिया मुझको, अब और न सता।
    ओओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा।

    सुन्दर रचना

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  2. समझा समझा कर मैं, तुझको थक गया हूँ
    तेरी कसम मैं तो, बिल्कुल ही पक गया हूँ
    पर प्रेम जी दिल कब समझता है. समझाने से तो अच्छा है आप दिल की सुनते रहिये.
    सुन्दर रचना

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  3. ओओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा।

    --संगीतबद्ध कराओ भाई इसे.

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  4. दिल पर काबू रक्खो जी!
    सुन्दर पोस्ट है।
    पोस्ट के साथ-साथ गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज की शुभकामवाएँ!

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  5. बढ़िया प्रस्तुति के लिए धन्यवाद . बधाई. दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ .

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  6. सुन्दर लिखा है . प्रेम जी बेहतरीन रचना ............

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  7. BAHUT KHOOB PREM JI, ACHCHA HAI JALDI SAMAJH JAYE TO , NAHIN TO AAPKO PARESHANI MEN DAAL DEGA. DIL.

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  8. आप सभी ब्लोगर मित्रों का मेरा हौसला बढाने के लिए दिल से धन्यबाद!!

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