गुरुवार, 28 मई 2009

उसके प्यार का तम्बू ही उजड़ गया


उसके प्यार का तम्बू ही उजड़ गया।
तम्बू  ही नहीं बम्बू भी उखड गया॥

सदमा ए गम वो झेल नहीं पाया
उसका सारा हाल ही बिगड गया। 

कैसे लौट पायेगा अपने हाल में
दिल से उसका दिल ही हड़ गया।

कौन जाने अब क्या होगा आगे
हाल देख कर होश ही उड़ गया।

जीना चाहता था वो अपने ढंग से
मगर जीवन का रुख ही मुड़ गया।

लगे न प्रेम रोग कभी किसी को
बेचारा प्रेम चाह में ही कुड़ गया।

8 टिप्‍पणियां:

  1. हड़ का क्या मतलब होता है प्रेम भाई!!

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  2. प्रेम का रोग कभी न लगे किसी को
    खुशी की चाह में बेचारा कुड गया।

    नज़्म अच्छी बन गई है।

    वैसे ये भी चल सकता था-
    खुशी की चाह में बेचारा सड़ गया।

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  3. समीर भाई,
    हड़ गया मतलब खल गया.

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  4. प्रेम जी,

    देशी शब्दों का कविताओं में प्रयोग कर एक विशिष्टता प्रदान करते हैं।

    नज़्म अच्छी बन पड़ी है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  5. प्रेमजी ,
    जीना चाहता था वो अपने ढगं से
    उसके जीवन का रुख मुड गया ,
    इन पंक्तियों में प्यार की गरिमा दिखाई देती है ,क्योंकि प्यार करके कोई भी अपने ढंग से जी नहीं पाता है ,हमारा प्यार हमें मिले या नहीं मिले ,जीवन के रुख को एक नई दिशा देता है ,चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक |बहुत गहरी पंक्तियाँ लिखी बधाई

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