तन के रोगी मन के रोगी देखे गए।
प्यार में तड़पते हुए जोगी देखे गए॥
ओखली के अदंर पर चोट के बाहर
बड़े ही चतुर जहाँ में भोगी देखे गए।
मतलब में तो मीठे पर वैसे हैं कडुए
ढंग-ढंग के जहाँ में ढोंगी देखे गए।
आता जाता तो कुछ भी नहीं है
फिर भी फेंकते हुए पोंगी देखे गए
achchi rachna
जवाब देंहटाएंSahi kaha..
जवाब देंहटाएंरोगी, भोगी, जोगी और ढोंगी के साथ
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार तुक़ मिलाया है आपने - पोंगी!
मज़ा आ गया!
वाह एक साथ इतनो पर वार......... बहुत खूब........
जवाब देंहटाएंprem ji, rachna prashansniya hai.
जवाब देंहटाएंaap mere blog par aaye, comment kiya hriday se aabhari hun,bhavishya men aate rahen aapke swagat hai.
आप सभी का प्यार ही मेरी प्रेरणा है.
जवाब देंहटाएंधन्यबाद!!!
जय हो
जवाब देंहटाएंसीधी बात,सच्ची बात,
जवाब देंहटाएंमन को भाई ये सौगात।
हम उसे अपने दिल में रहे ढूँढते ,
जवाब देंहटाएंवो कहीं प्रेम संग होगी, देखे गये ???
बहुत सटीक बात कही जी आपने. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जीवन की सच्चाई को आपने गजल में बखूबी पिरो दिया है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }