मैया मैहर वाली ,मुझपे महर करो
मुझपे महर करो, खुशियाँ नज़र करो
मैया मैहर वाली, मुझपे महर करो।
विपदाओं ने, मुझको घेरा
अपनों ने भी, मुख को फेरा
समझ में कुछ भी आता नहीं
कुछ भी मुझको भाता नहीं
मैया, आसान जीवन की डगर करो।
काम कोई मेरा, बनता नहीं
जोर कोई मैया, चलता नहीं
क्या करुँ क्या ना करुँ
क्या कहूँ क्या ना कहूँ
अपनी शक्ति का मुझपे असर करो।
द्वार तेरे मैया, जो भी पहुँचा
कुछ न कुछ, लेके ही लौटा
मेरी भी एक अर्ज़ सुन लो
जीवन में खुशियाँ भर दो
मैया, फ़िर से आबाद मेरा घर करो।
जय माता दी!!!
जवाब देंहटाएंachchha bhajan hai.
जवाब देंहटाएंaakhiri pankti me sudhaar kar len.
आबाद मैया फ़िर,मेरा घर करो।
ye kaisa rahega ?
बहुत सुन्दर वन्दना!
जवाब देंहटाएंजय हो माँ वीणा-पाणि की!
महामाई की शान में लिखी लाजवाब रचना ......... जय हो अंबे माता ......... सुंदर लिखा है .......
जवाब देंहटाएंbadhia bhajan , premji au
जवाब देंहटाएं... atisundar geet/bhajan !!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है प्रेम जी
जवाब देंहटाएंजय माँ जय प्रेम जी
सुंदर वन्दना !
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों में सुंदर वंदना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .....!!
जवाब देंहटाएंये 'महर' शब्द समझ नहीं आया .....??
वो शब्द महर नहीं ' मेहर' होता है ....!!
जवाब देंहटाएंभक्ति-रस में सराबेर हो गये हम तो!
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