शनिवार, 5 जून 2010

जीना मुश्किल होके तुमसे जुदा


जीना मुश्किल है होकर तुमसे जुदा
          पास आ या पास अपने बुला।
याद करो वो गुजरे हुए पल
              तुमने भुलाये मैं दूँ कैसे भुला।

कुछ न पूँछो क्या हाल हुआ मेरा
         तड़प के तन मन मेरा घुला।
थक गयी आँखें देख राहें तेरी
            भरोसे से न मुझे झूला झुला।

कभी तो सोचो बैठ कर अकेले
   जिंदगियों को उजाड़ने पर क्यों तुला।
बहुत तड़पा लिया मान भी जाओ 
          बात बात पर मुँह न फुला।

पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
      जीवन तो एक पानी का बुलबुला।
दूरियां जो बनी हैं अपने दरमियाँ
   दोष दोनों का ही रहा मिलाजुला।

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रशंसनीय..... छाप छोड़ने वाली प्रस्तुति।
    सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी

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  2. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  4. पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
    जीवन है एक पानी का बुलबुला।

    यही जीवन का सार है!
    बहुत ही बढ़िया रचना है!

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  5. बहुत तड़पा लिया मान भी जाओ
    बात बात पर अपना मुँह न फुला।

    पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
    जीवन है एक पानी का बुलबुला।

    waah !
    waah !

    bahut achha.............

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  6. पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
    जीवन है एक पानी का बुलबुला।

    वाह .. जीवन का फलसफा है इस शेर में ...

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  7. कभी तो सोचो अकेले बैठके यार
    जिंदगियों को उजाड़ने क्यों तुला। '

    - जिन्दगी उजाड़ने में नहीं जिन्दागे बनाने में आनंद है.

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  8. पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
    जीवन है एक पानी का बुलबुला.....

    बिलकुल सही कहा है आप ने....

    मरना सच्च है....
    जीना झूठ....

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