जीना मुश्किल है होकर तुमसे जुदा
पास आ या पास अपने बुला।
याद करो वो गुजरे हुए पल
तुमने भुलाये मैं दूँ कैसे भुला।
कुछ न पूँछो क्या हाल हुआ मेरा
तड़प के तन मन मेरा घुला।
थक गयी आँखें देख राहें तेरी
भरोसे से न मुझे झूला झुला।
कभी तो सोचो बैठ कर अकेले
जिंदगियों को उजाड़ने पर क्यों तुला।
बहुत तड़पा लिया मान भी जाओ
बात बात पर मुँह न फुला।
पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
जीवन तो एक पानी का बुलबुला।
दूरियां जो बनी हैं अपने दरमियाँ
दोष दोनों का ही रहा मिलाजुला।
प्रशंसनीय..... छाप छोड़ने वाली प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंपता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
जवाब देंहटाएंजीवन है एक पानी का बुलबुला।
यही जीवन का सार है!
बहुत ही बढ़िया रचना है!
बहुत तड़पा लिया मान भी जाओ
जवाब देंहटाएंबात बात पर अपना मुँह न फुला।
पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
जीवन है एक पानी का बुलबुला।
waah !
waah !
bahut achha.............
wah wah bahut khoob bahut khoob
जवाब देंहटाएंपता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
जवाब देंहटाएंजीवन है एक पानी का बुलबुला।
वाह .. जीवन का फलसफा है इस शेर में ...
कभी तो सोचो अकेले बैठके यार
जवाब देंहटाएंजिंदगियों को उजाड़ने क्यों तुला। '
- जिन्दगी उजाड़ने में नहीं जिन्दागे बनाने में आनंद है.
पता नहीं कब छोड़नी पड़े दुनिया
जवाब देंहटाएंजीवन है एक पानी का बुलबुला.....
बिलकुल सही कहा है आप ने....
मरना सच्च है....
जीना झूठ....