याद में यार की चाह में प्यार की
यह मेरा दिल है, जो जल रहा है
दिल के सिवा जलता भी क्या है
इसके सिवा और होता भी क्या है
याद में यार की चाह में प्यार की
यह मेरा दिल है, जो जल रहा है ...
उसके ही ख्यालों में खोया रहूँ
उसको ही ख्वाबों में देखा करूँ
चाहे सुबह हो या चाहे हो शाम
उसके ही दिलसे मैं सोचा करूँ
रहे हालत दिल की बेकरार सी
याद में यार की चाह में प्यार की
यह मेरा दिल है जो जल रहा है ...
धड़कन दिल की बढ़ जाती है
तबियत भी मेरी घबडाती है
चढ़ जाती है मस्ती सी मुझपे
मस्ती में दिल को तडपाती है
तड़प के मैंने दिल से पुकार की
याद में यार की चाह में प्यार की
यह मेरा दिल है जो जल रहा है ...
कोई बताये क्या मिलने का रास्ता
तुम सभी को अपने रब का वास्ता
समझ में मेरे कुछ भी आता नहीं है
देना जबाव कोई मेरी इस बात का
तुम सबको कसम परवरदिगार की
याद में यार की चाह में प्यार की
यह मेरा दिल है जो जल रहा है ...
मिलन का रास्ता तो मिलन में ही छुपा है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
101 no. par phone lagayen kya?....ha ha ha. bura na mane ...........bahut achcha likha hai.
जवाब देंहटाएंSundar Rachana...Judai ka dard bahut khub bataya aapne!Badhai swikaar kare
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बहुत सुंदर रचना है .. बधाई !!
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंप्यार के रंग में डूबी अच्छी रचना है .... बहुत खूब लिहा है प्रेम जी ....
जवाब देंहटाएंआपको महा-शिवरात्रि की बहुत बहुत बधाई .....
aap ke kavita bhahoot achhi hai atee sundar
जवाब देंहटाएंअहा प्रेम भाई क्या ख़ूब कहा प्रेम के लिए।
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