बुधवार, 22 अक्टूबर 2025

उदासियां

 उदासियां 

दिये हैं प्यार ने इस दिल को अब तो दाग़ कितने।

कि अब मिटेंगे न, चाहे खिले हों बाग़ कितने।

​उदासी के अँधेरों ने हमें घेरा है इस तरह कि

न होगा कुछ भी, जलते रहें अब चिराग़ कितने

​सफ़र में हार कर हम शांत ही बैठे आखिर में।

चटक कर टूट जाते हैं ये अब दिमाग़ कितने।

​ये दो दिल साथ अब रहने वाले देर तक नहीं।

भले ही अलापे कोई मधुर प्रेम-राग कितने।

​नहीं है प्यार का कोई भी सही इक निश्चित सूत्र।

जो टूटे बीच में ही जैसे बनके उठे झाग़ कितने।

​-प्रेम फर्रुखाबादी