शनिवार, 24 अप्रैल 2010

दिल चुराकर नजर चुराना ठीक नहीं होता


दिल चुराकर नजर चुराना ठीक नहीं होता।
     अपना बनाके फिर सताना ठीक नहीं होता।

निभा सको जितने उतने वादे करना सीखो
        वादा करके मुकर जाना ठीक नहीं होता।

दूर जाना ही था तो नजदीक में क्यों आये
     नजदीक आकर दूर जाना ठीक नहीं होता।

होता बहुत जरूरी प्यार में पीछे पड़े रहना
   पीछे पड़कर पीछा छुड़ाना ठीक नहीं होता। 

साथ में जीने मरने की पहले कसमें खाकर
     वो कसमें दिल से भुलाना ठीक नहीं होता।

तुम क्या जानो तुम बिन कैसे कैसे जिया हूँ
   दीवाने के दिल को रूलाना ठीक नहीं होता।

जीवन जीना है तो रोज दोस्त बनाते जाओ
      रोज - रोज दुश्मन बनाना ठीक नहीं होता।

पुण्य कमाते जाओ लोगों को हँसा हँसाकर
    रुला रुलाकर पाप कमाना ठीक नहीं होता।

दिल से दिल मिल जाये तो प्यार पनपता है
   दिल दुखाकर नफरत पाना ठीक नहीं होता।

कभी चैंन नहीं पाया मैंने जिये तेरी जुदाई में
  दिल लगाके दिल को दुखाना ठीक नहीं होता।

बिन सोचे समझे ही आ जाओ मेरी बाँहों में
    दिल दीवाने को यूँ तरसाना ठीक नहीं होता।



रविवार, 18 अप्रैल 2010

कभी वो मुझे ओढ़ते हैं तो कभी मुझे बिछाते हैं।


कभी वो मुझे ओढ़ते हैं तो कभी मुझे बिछाते हैं।
  अपनी मुहब्बत को मुझे कई ढंग से दिखाते हैं।

हम नहीं होते तो उन पर दुःख का पहाड़ टूटता
   मालूम नहीं मेरे बगैर दिन रात कैसे बिताते हैं।

मुँह से बात निकली कि आज तो ये चीज़ खाना
 जरा सी देर में वो चीज़ लाकर मुझे खिलाते हैं।

कोई अगर मदभरी आँखों से देखना भी चाहे तो
  सामने आकर वो उन नज़रों से मुझे छिपाते हैं।

उनका प्यार तो जहाँ में सबसे अलग ही लगता 
हर पल हर घड़ी मुझे नये-नये ढंग से रिझाते हैं।
  

कल जो दोस्त थे वो आज दुश्मन बने बैठे हैं

कल जो दोस्त थे वो आज दुश्मन बने बैठे हैं।
      दिलो दिमाग की वो आज उलझन बने बैठे हैं॥

दिल से उन्हें निकलना भी चाहूँ तो निकालूँ कैसे,
      दिल की सचमुच वो आज धड़कन बने बैठे हैं॥

सकून अब मिलने वाला नहीं दीवाने दिल को,
        दीवाने दिल की वो आज तड़पन बने बैठे हैं॥

काश! उनको होश होता अपने इस गुनाह का,
       अपने गुनाहों का वो आज दरपन बने बैठे हैं॥

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

राम बोलो राम, राम बोलो राम


राम बोलो राम,सुबह बोलो शाम
राम का नाम, हर सुख का धाम 
राम बोलो राम,सुबह बोलो शाम।

राम जी करेंगे,पार तेरी नैया
मान ले रे तू ,बात मेरी भैया 
खुल कर बोलो,बोलो दिल थाम।
राम बोलो राम,सुबह बोलो शाम

राम शरण में, जो भी आये 
जो भी मांगे, वो ही पाये 
लगता नहीं हैं, कोई भी दाम।
राम बोलो राम,सुबह बोलो शाम। 

राम भक्तों ने, हमेशा कहा है
राम कृपा से ही काम बना है 
राम का नाम,दे बड़ा आराम। 
राम बोलो राम,सुबह बोलो शाम।

-प्रेम फर्रुखाबादी 

रविवार, 11 अप्रैल 2010

ना वो पास आते ना वो पास बुलाते हैं


 वो पास आते हैं ना वो पास बुलाते हैं।  
     न वो कुछ सुनते हैं ना वो कुछ सुनाते॥ 


उनका चुप रहना अब तो सहन नहीं होता
    उन्हें बहलाने को जब कि खूब घुमाते हैं॥ 


जाने कहाँ खोये रहते जब भी देखो उन्हें 

उनके सजदे में जब-जब खुदको झुकाते हैं॥ 

कभी आँख से आँख मिली ही नहीं उनसे
  दिल दुखता है जब मुझसे आँख चुराते हैं॥ 


बिना बात किये दो दिल एक नहीं होते
      जाने क्यों खुदको वो मुझसे छुपाते हैं॥


उनसे कहा एक दूजे को भूल ही जाएँ
न वो खुदको भूलते हैं  मुझको भुलाते है॥ 

बड़ा ही मुश्किल हुआ मुझे उनको समझना
  कभी खुद रोते हैं तो कभी मुझे रुलाते है॥


 उनकी इन्हीं अदाओं पर तो मैं मरता हूँ
  न गुदगुदी होती है उन्हें न वो गुदगुदाते हैं॥ 



शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

पत्नी के रूप में खुदा तूने तोहफा दिया हसीं है


पत्नी के रूप में खुदा,तूने दिया तोहफा हसीं है।
   महसूस नहीं हो रही कि, मेंरे पास कोई कमी है॥ 

उसे जितना भी सराहूँ उतना ही मुझे कम लगे
   प्यार से प्यारा हुआ सारा आसमां सारी जमीं है॥ 

सुख-दुःख में साथ रह के रखे मुझे सहेज कर
    उस जैसा तो इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है॥

तारीफ में उसकी भला कहें तो क्या कहें हम 
     उसके बगैर दुनिया में कहीं भी गुजारा नहीं है॥  

ऐसा साथी नहीं है वो जो हाँ में ही हाँ मिलाये
     कभी हाँ कहे तो कभी न सच्चा साथी वही है॥ 



गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

उनकी रचना में नहीं जितना उनमें दम है


उनकी रचना में नहीं,जितना उनमें दम है। 
देख प्रोफाइल हर कोई जाता उनमें रम है॥ 

टिपण्णी करने जाता रख के सिर पर पाँव 
मुहब्बत के लिए यह मेहनत बहुत कम है॥ 

आँखों के अंधों को कुछ भी नहीं सूझता
आखिर क्या है उनमें अच्छाई क्या ख़म है॥ 

जो है पास उसके उसकी ख़ुशी नहीं कोई 
जो पास नहीं है उसके खलता वही गम है॥ 

उसका ध्यान कोई यूँ भंग नहीं कर पाता 
भंग जिससे होता पायल की छम छम है॥ 

समझदारों को समझाने की जरूरत नहीं
प्यार मिले तो बताओ फिर कैसी शरम है॥ 

तारीफ़ से हमेशा प्यार हासिल नहीं होता 
ब्लागर्स के लिए कितना प्यारा यह भ्रम है॥


बुधवार, 7 अप्रैल 2010

बताओ मुझे तुम तड़पता क्यों छोड़ गये


बताओ मुझे तुम तड़पता क्यों छोड़ गये।
       दिल- दिमाग से तरसता क्यों छोड़ गये॥

क्या यही थी तेरे प्यार की गहराई दिलवर
    दिल से लगा कर मचलता क्यों छोड़ गये॥

बैठ कर सकून से बातें भी नहीं कर पाये
       ये तन-मन मेरा सुलगता क्यों छोड़ गये॥

कुछ कह जाते तो कुछ सुन जाते आखिर
     मुझको बेसहारा सुबकता क्यों छोड़ गये॥

मेरी मुहब्बत मुझे मेरी भूल सी लग रही
       कैसे सम्भलूंगी धड़कता क्यों छोड़ गये॥ 

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

देख के तुझको मैं बेजुबान रह गया


देख के तुझको मैं बेजुबान रह गया।
            उठा मगर ठहर के तूफ़ान रह गया॥

तुम क्या गए मानो प्राण निकल गए
            खाली तन का यह मकान रह गया॥

ऐसे रूठे मुझको मुड के भी न देखे
           कहें कि अब क्या दरमियाँ रह गया॥

वो चला गया जिसपे गरूर था मुझे
            नीचे जमीं ऊपर असमान रह गया॥

उनकी हर बात मुझे सच लगती थी
       सी वही सच अब झूठा बयान रह गया॥



शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

आखिर मोहब्बत को क्यों समझेगा जमाना


आखिर मोहब्बत को क्यों समझेगा जमाना।
           न समझना जमाने का रहा अन्दाज पुराना।

मोहब्बत करने वाले मिटे मोहब्बत न मिटी
          मुश्किल है दुनियां से मोहब्बत को मिटाना।

शायद फले-फूले मोहब्बत चोरी-चोरी से ही
         मोहब्बत गर करोगे तो प्यारे पड़ेगा छुपाना।

मोहब्बत की दुश्मन है ये दुनियां सदियों से
         नहीं माना वो जो हुआ मोहब्बत में दीवाना।