गुरुवार, 30 जुलाई 2009

कोई नहीं है हमारा यहाँ


कोई नहीं है हमारा यहाँ,
है मतलबी यह सारा जहाँ।
जिसने हमने अपना बनाया,
समझा उसने पराया यहाँ॥

कहने को हैं रिश्ते नाते,
होते तब तक जब तक खाते
मानो या न मानो कोई ,
खब्बुओं का है यह मारा जहाँ।

बेदर्दों की यह दुनिया है, 
दुनिया भी क्या यह दुनिया है
जब भी देखा आजमा कर 
मिलता नहीं है सहारा यहाँ।

अपनी न होगी दुनिया कभी,
चाहे मिटा दो ये जिन्दगी
कहते भी कुछ भी बने न
जीवन बड़ा ही बेचारा यहाँ।





मंगलवार, 28 जुलाई 2009

कभी कभी अपने ही फैसले हमें नहीं सुहाते हैं


कभी कभी अपने ही फैसले हमें नहीं सुहाते हैं।
अन्दर ही अन्दर हम चीखते और चिल्लाते हैं।

दुनिया में लोग अपनी सोच पे ही लिया करते
कभी खुदको रुलाते तो कभी खुदको हँसाते हैं।

अपनों की सलाह भी हमको मान लेनी चाहिए
जो भी मानते वो अक्सर ही आगे बढ़ जाते हैं।

जो लेते रहते सीख गैरों की गलतियों से सदा
वही लोग अपने को जीवन में बेहतर बनाते हैं।

सोमवार, 27 जुलाई 2009

इस दुनिया में कौन है अपना कहना मुश्किल है


इस दुनिया में कौन है अपना, कहना मुश्किल है। 
जाने कौन कब दे जाए धोखा,कहना मुश्किल है॥ 

कहने को सभी कहते हैं कि हम साथ निभाएंगे
लेकिन कौन निभाएगा कितना,कहना मुश्किल।

अक्सर लोग भरोसे से ही, तोड़ देते हैं भरोसा 
आख़िर किस पर करें भरोसा,कहना मुश्किल है।

कहते मुहब्बत और जंग में,सब कुछ है जायज 
पर इनके सिवा और बचा क्या,कहना मुश्किल है।

रविवार, 26 जुलाई 2009

अपनों को अपनत्व दिखाएँ मिलें तो अहसास कराएँ


अपनों को अपनत्व दिखाएँ मिलें तो अहसास कराएँ
जिन्दगी आसान होगी साथ बैठें पल दो पल बिताएँ।

त्याग, क्षमा, धैर्य और प्रेम से ही रिश्ते जिन्दा रहते
गर भरोसा न हो तो जीवन में इन्हें जरूर अपनाएँ।

ज्यादा बातें करने से रिश्तों में तनाव आ ही जाता
हो सके अपनी इस आदत पर विवेक से काबू पाएँ।

हमेशा किसी से बात करने को मन नहीं करता है 
ऐसे हालात में भूल कर भी किसी के पास न जाएँ।

खासम खास की मदद करने की जरूर सोचते रहें  
ऐसा सोच कर अपनों को और अपने करीब लाएँ।

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

बड़ी मछली छोटी को खाए जा रही है


बड़ी मछली छोटी को खाए जा रही है।
           दुनिया बस ऐसे ही चलती जा रही है।

कमजोरों पर जुल्म सदा होते ही आए
          यह दुनिया आज भी जुल्म ढा रही है।

अभी तो ढंग से हम जी भी नहीं पाए 
           कि जिन्दगी मेरी हाथों से जा रही है।

उसकी खूबसूरती का कोई जवाब नहीं
       जब देखो तब ही वो दिल को भा रही है।

उसको मनाने की तो कोशिश बहुत की
        मगर उसके मुँह पे हमेशा ही ना रही है।

हक़ मांगो तो तकलीफ होती है उनको
        हमारी सरकार हमको ही ठुकरा रही है।

मुनाफा कमा के हो गए वो नम्बर वन
        कर्मचारियों की हालत लड़खड़ा रही है।

बुधवार, 22 जुलाई 2009

रात पिया ने बड़ा तंग कियो रे


रात पिया ने बड़ा तंग कियो रे
         कैसे कहूँ जो मेरे संग कियो रे

पल भर उसने सोने न दिया रे
      रोना चाहा पर रोने न दिया रे
         ऐसे लड़ा वो जैसे जंग कियो रे

अपनी ही धुन में खोया रहा वो
    कुछ न सुनी हाय मैंने कहा जो
      दैया हाल बड़ा ही बेढंग कियो रे

बहुत बचाया पर बचा नहीं पाई
   उसकी पकड़ को छुडा नहीं पाई
      ढीला हर एक उसने अंग कियो रे

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

देखो शबाब है यह मस्त शराब है यह


देखो शबाब है यह मस्त शराब है यह।
        आगे बढ ओ दीवाने बड़ा लाजवाब है यह॥ 

मेरे बदन की खुश्बू फैली हुई है हर शू
       मेरी खुश्बू में समाजा खिलता गुलाब है यह।

पास आता क्यों नहीं मुझे सताता क्यों नहीं
       सच सच कहूं मैं तुझसे आदत ख़राब है यह।

बाँहों में लीजिये ना आँखों से पीजिये ना
    आ के बेखौफ पढ़ ले हुस्न की किताब है यह।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

हमने पड़ोसी से दोस्ती की चाह की


हम ने पड़ोसी से दोस्ती की चाह की।
               
 पर उसने न हमारी कोई परवाह की॥

हम अच्छे रिश्ते बनना चाहते हैं उस से
दुनिया ये जानती है हम कह रहे कब से
            कारगिल में घुसने की उसने गुनाह की॥

सोचा था इंसानियत को मिल के पूजेंगे
दिलों में मुहब्बत को हम खुल के ढूँढेंगे
            मगर पड़ोसी ने हमेशा हम से डाह की॥

इल्जाम लगाना उसकी है पुरानी आदत
इसी बात पर हम को है उससे शिकायत
           जहाँ में उसने हमारी बड़ी अफवाह की॥

हम को अपने पड़ोसी से नहीं है नफरत
मगर उसके दिल में जरा नहीं है उल्फत
           बात बने इस लिए हमने आउ जाउ की॥

हमें लगता पड़ोसी में कोई चेतना नहीं
इंसानियत की खातिर कोई वेदना नहीं
             हम ने हमेशा ही उसकी वाह-वाह की॥

हम से टकरा के उसको पछताना होगा
दोस्ती से ही रिश्ता अच्छा बनाना होगा
            हम ने हमेशा मिलने की सरल राह की॥

दुश्मनी की राहों से उसको मुड़ना होगा
 साथ-साथ तभी दोनों का चलना होगा
            हम ने जब की मुहब्बत की निगाह की॥ 














गुरुवार, 16 जुलाई 2009

हम तो पड़ोसी से दोस्ती करने चले


हम तो पड़ोसी से दोस्ती करने चले।
        मगर ले छुरा पड़ गया वो हमारे गले॥
कारगिल सीमा लांघी उसने घात से
         हम को लोग ये दिखते नहीं हैं भले॥

पिछली लड़ाइयों से कुछ सीखे नहीं
         तभी रह गए इस बार भी हाथ मले॥
इंसानियत इन्हें कभी रास न आयी
           ये उनसे खुश रहे जिनसे गए छले॥

ये आदी हुए इंसानी खून बहाने के
           हम शान्ति चाहें इस गगन के तले॥
रह रह जोर लगाना इनकी आदत
           मगर इन के इरादे कभी नहीं फले॥

दम नहीं है फ़िर भी फडफडा रहे
           दुनिया तबाह करें इनका बस चले॥

फिरते बड़े उतावले युद्ध के लिए
           हम तो टालना चाहें जब तक टले॥

दूसरों के घर में घुसना ठीक नहीं
            पता नहीं ये कैसे संस्कारों में पले॥
क्यों नहीं आता इनकी समझ में
            खेलें आग से मगर कई बार जले॥

बुधवार, 15 जुलाई 2009

मैं क्या बताऊं! तुम्हें दुःख अपना गुइयां।


क्या मैं बताऊं तुम्हें दुःख अपनों गुइयां।
मिलत जुलत नाहीं हैं मुझसे मेरे सइयां॥

सब सखियाँ मेरी मज़ा उडावे
सइयां उनके उन्हें गोद में बिठावे
पर
 मुझको नहीं है कहीं कोई ठैयां।

सैयां हैं मेंरे अजीब तरह के
रूठे रहत जाने कौन वजह से
कब हूँ न डालें बहियों में बहियां।

तुम्हारे दिन अच्छे कटत हैं सहेली
पर मैं तो रही हूँ घुट घुटके अकेली
दुःख के सिवा न मिली सुख की छैयां।